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- दशम अध्याय
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...अलग है, परन्तु इससे दुःखों का, कष्टों का अन्त हो जाता है। ऐसा
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कहना एवं मानना भारी भूल है । जब मदिरा का नशा समाप्त होता - है तो दुःख एवं कष्ट और बढ़ जाते हैं । अतः मदिरा दुःख नाशक नहीं, बल्कि दुःखों कष्टों एवं चिन्ताओं की जननी है । इससे नित्य नई चिन्ताए उत्पन्न होती रहती हैं । इसलिये महापुरुषों ने इन्सान को नशैले पदार्थों से दूर रहने का आदेश दिया । मानवता की पगडंडी पर गतिशील मनुष्य को शराव एवं भांग, गांजा, सुल्फा, अफीम, ...तमाखू बीड़ी, सिगरेट आदि मादक वस्तुनों का सेवन नहीं करना
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चाहिए ।
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या नकल औषध के रूप में शराब का इस्तेमाल वहुत बढ़ गया है | जम्मू-कश्मीर, शिमला, शिलांग जैसे ठंडे प्रदेशों में सर्दी की मोसम में ठंड से बचने के लिये बहुत व्यक्ति शराब, ब्रांडी का सेवन करते : हैं । कुछ लोग पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिये द्राक्षासव यादि प्रसवों का सेवन करते हैं । द्राक्षासव भी एक तरह से शसब ही है । क्योंकि द्राक्षासव अंगूरों के रस को सड़ा कर ही बनाया जाता है, इसे अंगूरी भी कहते हैं। इससे नशा भी होता है । अन्य प्रसव भो जिसके वे बने होते हैं उन पदार्थों के रस को सड़ाकर ही बनाये जाते हैं । अतः उनमें
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स जीवों की हिंसा होती है । इसलिए प्रासव भा धार्मिक दृष्टि स त्याज्य है । श्रहिंसा के पथिक, श्रावक एवं साधु को हर हालत में - भले ही बीमारों की स्थिति भी क्यों न हो ऐस पदार्थों के सेवन से दूर रहना चाहिए, उन्हें शराब एवं द्राक्षासव आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
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वेश्यागमन
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यह हम देख चुके हैं कि प्रहार के बिगड़ने पर व्यवहार-श्वाच