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प्रश्नों के उत्तर
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• झूठ मद मूल न पीचइ जेका पार वसाय ||".
सन्त कवीर ने कड़े शब्दों में मदिरा का विरोध किया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि मदिरा मनुष्य को पशु बनाती है, उससे धन का नाश होता है। कवीर के शब्दों में ही सुनिए- "औगुण कहीं शराब का ज्ञानवन्त सुनि लेय
मानस से. पशुत्रा करें, द्रव्य गांठि को देय,.. .. अमल. आहारी-प्रातमाका न-पावे पार,
कहे कबीर पुकार के त्यागो ताहि विचार ॥" । ईसाइयों के धर्म ग्रन्थ में लिखा है.:: Drink not wine nor strong drink and eat not any-unclean thing ..... ... अर्थात्-मदिरा मत पीओ और न किसी-मादक वस्तु का सेवन. . करो तथा न किसी अपवित्र वस्तु का भक्षण-करो।...
.. अंग्रेजी में एक कहावत है कि 'मदिरा के अन्दर जाते. ही. बुद्धि, वाहर हो जाती है। अर्थात्-मदिरा सेवन से बुद्धि नष्ट हो जाती है.... wine in and wit out... .............
. : . मंदिरा के सेवन द्वारा सर्व तरह से हानि होती है। इससे उन्माद
एवं पागलपन के सिवाय और कुछ लाभ नहीं होता। थोड़ी देर के - लिए भले ही उसे यह अनुभूति होती है कि वह सब कष्टों से मुक्त
हो गया, परन्तु ऐसा होता नहीं। वास्तव में यह एक तरह से मन का .. भ्रम है । नशे में वेभान हो जाने से वह बेहोश-सा हो जाता है और वेहोशी की हालत में उसे सुख-दुःख का बोध नहीं होता। यह बात ,
JUDGES 13-4
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