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प्रश्नों के उत्तर अपने पेट को भरने की कोई कला नहीं थी। अत: उसे अपना पेट . भरने के लिए पुरुष की राक्षसी भावना का, वासना का शिकार होना पड़ा, अपना तन बेचना पड़ा। आज भी हम देखते हैं कि ७० प्रतिशत के करीव स्त्रियों ने आर्थिक विवशता के कारण वेश्या-वृत्ति को अपना रखा है । कुछ व्यक्तियों ने अपने स्वार्थ के लिए, पैसा कमाने के लिए . नारी कल्याण केन्द्र, महिला अनाथालय आदि नामों से वेश्यालय खोल . रखें हैं । यह भारत जैसे धर्म-प्रधान देश के लिए घोर कलंक की वात .
महापुरुषों ने वेश्यागमन को महापाप कहा है। क्योंकि इससे नारी और पुरुष दोनों का जीवन बिगड़ता है। जीवन तभी तक उपयोगी रहता है, जब तक वह मर्यादा. में बंधा रहता है। बांध की मर्यादा में स्थित पानी जीवन के लिए लाभदायक है। परन्तु जव पानी.. की धारा बांध तोड़कर बह निकलती है तो चारों ओर हाहाकार मचा देती है, प्रलय का दृश्य उपस्थित कर देती है। इसी तरह वासना का प्रवाह भी जब मर्यादा से बाहर वह निकलता है तो वह स्व-पर: दोनों के लिए नुक्सान का कारण बन जाता है । मनुष्य मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक संकटों से घिर जाता है। . ... यह तो स्पष्ट है कि स्त्री पुरुष की तरह आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं है। उसके पास अर्थ कमाने की कला नहीं है। केवल रूप-सौन्दर्य
ही है- जिससे पुरुष को लुभा कर वह उससे पैसा प्राप्त कर सकती - है। इसके लिए उसे अपने आपको बेचना पड़ता है, या यों कहिए, कुछ: . देर के लिए कामान्ध पुरुष के हाथ सौंपना पड़ता है. । इसमें वह भले- ::: बुरे का विचार नहीं करती, वह तो सिर्फ पैसा देखती है । सन्त भर्तृ-.. हरि ने भी शृगार शतक में लिखा है