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दशम अध्याय
आकाश में उड़ना तो सीख गया, पर इन्सान की तरह जमीन पर चलना भूल गया । क्योंकि उसकी दृष्टि चील और गिद्ध से विशाल
नहीं बनी । जैसे चीलः अनन्त आकाश में उड़ाने भरते समय भी पृथ्वी .. पर रेंगने वाले छोटे-मोटे जन्तुओं को खाने की अोर दृष्टि लगाए
रहती है । वह उड़ती है अनन्त आकाश में, पर अभी तक उसकी दृष्टि ... आकाश की तरह अनन्त नहीं वनी, उसका हृदय विराट् नहीं बना ।
वह तो अभी तक क्षुद्रताओं से भरा पड़ा है । इसी तरह इन्सान. भी आकाश में तो उड़ने लगा, परन्तु दूसरे प्राणियों को समाप्त करने की तथा दूसरे जीवधारियों के मांस और खून से अपने शरीर को मोटा
ताजा बनाने की संकुचित दृष्टि नहीं बदली। आकाश में उड़ना सीख ..... कर वह भी चील और गिद्ध की तरह पशु-पक्षियों के मांस पर टूट पड़...ता है। अस्तु,आकाश में उड़ने में कोई विशेषता नहीं है। विशेषता है- . ...अपने हृदयं एवं अपनी दृष्टि को विराट् एवं व्यापक बनाने को । अपने हित एवं सुख के लिये दूसरे प्राणियों के हित और सुख को भी सुरक्षित रखने की । इस दृष्टि में ही इन्सानियत. छुपी हुई है। आज इन्सान को इसे ही पाना है और इसे इन्सान को तरह जमीन पर चल कर ही पाया . जा सकता है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य एक इन्सान की तरह चलना सीखे । मानव की तरह जीना एवं रहना । सीखे। शाकाहार पर सन्तोष करके प्रत्येक प्राणी का सम्मान करना . सीखे। . .. ... ... ... . .
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शराब
: :: मदिरा भी एक दुर्व्यसन है । अहिंसा-निष्ठ एवं दया-प्रेमी मानव के लिए यह भी सर्वथा त्याज्य है । क्योंकि इसके बनाने में महाहिंसा