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प्रश्नों के उत्तर
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यह अर्थ नहीं है कि वह संसार के अन्य सभी प्राणियों को निगल जाए। याद रखिए, मनुष्य की महानता पशु-पक्षियों को खाने में नहीं है। यह काम तो पानी में रहने वाली मछली एवं अन्य जंगली जानवर. तथा कीड़े-मकौड़े भी करते हैं । 'मत्स्य गलागल न्याय' की कहावत हमारे यहां प्रसिद्ध ही है । जैसे बड़ी मछली छोटी मछली को खा.. जाती है, वैसे ही वड़ा एवं सवसे श्रेष्ठ माना जाने वाला मानवः भी पशु-पक्षियों को अपने पेट के खड्डे में डालता रहे तो वह मत्स्य एवं : - अन्य जंगली जानवरों से श्रेष्ठ है, यह कहना भारी भूल होगो । एकदूसरे को खाने का काम तो जंगली जानवर भी करते हैं, परन्तु एकदूसरे की रक्षा करने का, प्रत्येक प्राणी के जीवन को सुखी बनाने का,
आगे बढ़ाने का, गिरते हुए जीवन को सहारा देने का काम पशु नहीं, मानव ही कर सकता है। और इसी कारण वहे प्राणी-जगत में सबसे
श्रेष्ठ है, महान् है। मानव के इसी एक गुण के कारण ही भारतीय सं. स्कृति के सभी विचारकों ने मानव को; इन्सान की श्रेष्ठता एवं महान.. ता के गुण गाए हैं। .
. . . . . . . कहना चाहिए कि आज मनुष्य अपनी ज्येष्ठता एवं श्रेष्ठता के . गण को भूल गया है। वह दूसरों को हजम करके,खा करके वड़ा बनना
चाहता है। वह दूसरों की शक्ति एवं ताकत छीन कर शक्ति - संपन्न
बनने की इच्छुक है। वह दूसरे प्राणियों को बर्बाद करके आगे बढ़ने .. की ओंकांक्षा रखता है । वह दूसरों को निर्धन एवं निष्प्राण वना कर
अपने खजाने भरने का प्रयत्न करता है। और यही कारण है कि वह
पशता से ऊपर नहीं उठ पाता। आज मानव विज्ञान के क्षेत्र में वहत ' आगे बढ़ गया है। परन्तु जीवन-व्यवहार के क्षेत्र में वह पशु-जगत से
ऊपर उठा हो,ऐसा दिखाई नहीं देता । वह चील और गिद्धों की तरह