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' दशम अध्याय .. नहीं हो रहा था कि उसे खोल कर देखे । उसे भय हो रहा था कि
कहीं इसमें बम्ब तो नहीं छिपाया है, जो हाथ का स्पर्श पाते ही फट . जाए या न मालूम किस समय फट पड़े । उसने डरते हुए पूछा- इस में .
क्या है ? जय प्रकाश जी ने मुस्कराते हुए कहा- यह आप ही के लिए . . है । अव तो उसका भय और बढ़ गया । पर उसे सूटकेस में स्थित एक-एक वस्तु की जांच करनी थी। अतः एक सिपाही को बुलाया और उसे बण्डल खोलने को कहा। उसने बिना किसी हिचक के बंडल खोलकर अफसर के हाथ में रखा तो साहब का चेहरा फ़क हो गया, ... उसका सिर शर्म से झुक गया और जय प्रकाश एवं अन्य देखने वाले खिल-खिल्ला कर हंस पड़े। उसमें से निकला क्या ? देशी जूतों का ..
एक जोड़ा । इतना साहस शौर्य है मांसाहारियों का कि जूते का बंडल · भी उनके लिए पिशाच बन गया।... ... ... .......
सत्य यह है कि मांसाहार शक्ति को बढ़ाता नहीं, क्षय करता है। . वह तो क्रूरता को बढ़ाता है और क्रूरता एवं नृशंसता को शक्ति का ।
नाम देना शक्ति का उपहास करना है। क्रूरता ताकत नहीं बल्कि सबसे बड़ी कमज़ोरी है । अतः मांसाहार को शक्ति सम्वर्धक मानना सर्वथा । ग़लत है। आप अंग्रेजों की शक्ति एवं ताकत देख चुके हैं। वे रिवॉलवर के विना बाहर घूम-फिर नहीं सकते। शस्त्रों से सुसज्जित होते हुए भी उन्हें खतरा बना रहता है । यह है उनकी शक्ति एवं शौर्य का परिचय । दूसरी ओर है महात्मा गांधी का जीवन, जो तोप और , . बन्दूकों के बीच भी खाली हाथ साहस के साथ घूमते फिरते रहे हैं। नौआखली को डांडी यात्रा किसी मांसाहारी अंग्रेज़ के लिए स्वप्न में भी संभव नहीं हो सकती । तो महात्मा गांधी में यह आत्मिक शक्ति, .. 'साहस एवं शौर्य था कि वे बिना शस्त्र के एक सैनिक - शक्ति से युक्त