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प्रश्नों के उत्तर
min राष्ट्र के साथ लड़ते रहे और अन्त में विना शस्त्र के ही उसे परास्त कर दिया। उन्हें यह शक्ति, ताक़त मांसाहार से नहीं, शाकाहार से .. ही मिली थी । बापू सदा शाकाहारी रहे हैं। अपने अध्ययन काल में . इंग्लैंड में रहते हुए भी आपने सामिष भोजन को छूया तक नहीं। यहां तक कि भयंकर रोग से ग्रस्त अवस्था में भी आपने मांस एवं अंडे का शोरवा तथा शराब पीने से स्पष्ट इन्कार कर दिया । वे मांस खाने को अपेक्षा मर जाना श्रेष्ठ समझते थे। तो वापू में जो इतनो शक्ति, . साहस एवं शौर्य था.वह सात्त्विक आहार एवं सात्त्विक रहन-सहन का. ही प्रतिफल था। . इसके अतिरिक्त विश्व के माने हुए दो पहलवानों के शक्ति सामर्थ्य का अवलोकन करने पर हम अंच्छी तरह समझ सकेंगे कि वन. स्पत्याहार कितना ताक़तवर है । एक ओर किंग-कांग का शरीर हैजिसका आहार एक दानव से कम नहीं है । जिसने अपने पेट को कविस्तान बना रखा है । वह नाश्ते में ३ सेर दूध और ३६ अंडे लेता है। भोजन के समय ६ मुर्गे, प्राध सेर मक्खन, डेढ़ सेर शाक-रोटी और १ सेर फलों का रस । रात के भोजन में ३ बतक, डेढ़ से र शाक-रोटी और सोते समय दो सेर दूध पीता है । उसका चेहरा भी दानव-सा भयावना प्रतीत होता है । दूसरी ओर भारतीय पहलवान दारासिंह है-जो जन्म से शाकाहारी रहा है और अब भी शाकाहारी है। दुव,
बादाम और फल जिसका भोजन है। किंग कांग को तरह उसका · · शरीर मोटा नहीं है,परन्तु सुगठित, सुडौल,फुर्तीला और ताक़तवर है।। . . अपने समाचारपत्रों के पृष्ठों पर पढ़ा होगा कि दारासिंह उसे- दैत्या- .
कार किंगकांग को कई बार कुश्ती में हरा चुका है। जबकि किंगकांग ।। शरीर में अपने से दुबले दिखने वाले भारतीय पहलवान को एक बार