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दशम अध्याय
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उन्होंने महत्त्वपूर्ण काम किया है।
इस से स्पष्ट है कि भारतियों ने भी विकास किया है। यह वात अलग है कि दोनों के विकास का ढंग एवं क्षेत्र भिन्न रहा है और दृष्टि संस्कार एवं खान-पान की भिन्नता के अनुसार कार्य-क्षेत्र में भी भिन्नता का आना स्वाभाविक था । पाश्चात्य दिमाग़ भौतिक प्रगति में लगे और उन्होंने बड़े-बड़े यन्त्रों को खड़ा कर दिया, जो भूत पिशाच की तरह भयावने प्रतीत हो रहे हैं, केवल प्रतीत ही नहीं .. हो रहे हैं पर वास्तव में भयावने सिद्ध भी हो रहे हैं । परन्तु भारतीय विचारकों ने आध्यात्मिक क्षेत्र में सोचा-विचारा एवं विकास भी किया । परिणाम स्वरूप उन्होंने भयानक यन्त्र तो खड़े नहीं किए, परन्तु विनाश से बचने की ताकत उसे दी, जिसके सामने
बम्बों की शक्ति भी दब जाती है। वह शक्ति थी-सत्य और अहिंसा .. की, जीरो और जीने दो की ... " Live and Let Live." . इस क्षेमकरी एवं कल्याणकारी भावना के विकास ने भारत को ही।
नहीं, बल्कि विश्व को विनाश से बचाया है। यही कारण है कि भग 'वान महावीर, बुद्ध एवं गांधी जैसे व्यक्ति भारत में पैदा होते रहे हैं।
और मानव को सदा यह पाठ सिखाते रहे हैं कि युद्ध एवं शस्त्रों से . शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती : दूसरे का खून बहा कर कोई व्यक्ति या
राष्ट्र सुख की नींद नहीं सो सकता। दूसरों को सुख देकर ही इन्सान सुखी रह सकता है। हथियारों से नहीं, बल्कि प्रेम-स्नेह, त्याग एवं सेवा भाव से मनुष्य विश्व में शान्ति की सरिता बहा सकता है। आज के वैज्ञानिक एवं राजनेता- जो युगों से, शताब्दियों से युद्धों एवं शस्त्र की शक्ति पर विश्वास करते रहे हैं, कहने लगे हैं कि विश्वशान्ति के लिए सेना एवं हथियार उपयोगी नहीं हैं, उनको समाप्त