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अ०१३/प्र०१
भगवती-आराधना / ५५ ग्रहण करूँगा। दाता के द्वारा लायी गई भिक्षा में से इतने ही ग्रास ग्रहण करूँगा। (गा. पाडय' २२१)। सोने, चाँदी, काँसे या मिट्टी के पात्र में ही लाया गया भोजन ग्रहण करूँगा। स्त्री, बालिका, युवती या वृद्धा के ही द्वारा दिया गया आहार ग्रहण करूँगा। (गा. पत्तस्स' २२३)।
इस प्रकार के अभिग्रहों का विधान श्वेताम्बर-आगमों में नहीं मिलता। श्वेताम्बर विद्वान् डॉ० सुरेश सिसोदिया लिखते हैं-"दिगम्बर-परम्परा के श्रमण संकल्प या अभिग्रह लेकर आहार के लिए गमन करते हैं। जहाँ उनका अभिग्रह पूरा होता है, वहीं वे आहार ग्रहण करते हैं। भगवती-आराधना में विविध प्रकार के अभिग्रह एवं संकल्पों का उल्लेख हुआ है। श्वेताम्बरपरम्परा के श्रमण आहार-ग्रहण के लिए किसी तरह का अभिग्रह या संकल्प नहीं करते।"६५ यतः यापनीय-साधु श्वेताम्बर-आगमों को प्रमाण मानते थे, अतः यापनीयमत में भी इन अभिग्रहों की मान्यता नहीं थी, यह स्वतः सिद्ध होता है। भगवती-आराधना में प्रतिपादित यह अभिग्रहविधान भी यापनीयमत के विरुद्ध है, जिससे सिद्ध है कि वह यापनीयग्रन्थ नहीं है।
. १३ भगवती-आराधना में कुन्दकुन्द की गाथाएँ . भगवती-आराधना में आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अनेक गाथाएँ ग्रहण की गयी हैं, जिनके उदाहरण आचार्य कुन्दकुन्द का समय नामक दसवें अध्याय के प्रथम प्रकरण में दिये गये हैं। इससे सिद्ध होता है कि वह कुन्दकुन्द की परम्परा का ग्रन्थ है। यह उसके दिगम्बरग्रन्थ होने का एक अन्य अन्तरंग प्रमाण है।
घ दिगम्बरग्रन्थ होने के बहिरंग प्रमाण
सभी टीकाकार दिगम्बर भगवती-आराधना पर जितनी भी टीकाएँ लिखी गई हैं,६६ उन सब के लेखक दिगम्बरमुनि और दिगम्बर पण्डित ही थे। उनमें से एक भी यापनीय नहीं था।
६५. डॉ० सुरेश सिसोदिया : जैनधर्म के सम्प्रदाय / पृ.१७९-१८०। ६६. देखिए , पं० नाथूराम जी प्रेमीकृत 'जैन साहित्य और इतिहास'। (प्रथम संस्करण)।
पृ.३१-३७।
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