Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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७९६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ आवश्यकनियुक्ति (भद्रबाहु-द्वितीय, श्वे.) उत्तरपुराण (गुणभद्र) ७३० ...
७०, १३९, २४४, ४९८, ६२५, उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ (परम्परा, आवश्यकनियुक्ति (मूलाचारगत) २४० सम्प्रदाय) २५३, ४१२, ४१३, ४५७, आवश्यक (प्रतिक्रमणसूत्र) ७७७ .
६२५, ६२६ आवश्यकसूत्र ५, १००, ४०४
उत्तराध्ययन-नियुक्ति (भद्रबाहु-द्वितीय, आशाधर (पण्डित) ३, १०५, १०७-११२,
श्वे०) ४९८
उत्तराध्ययनसूत्र ७५,७६,१६१,१६२, २५६, आहार २९१, २९४
३९३, ३९५, ४००, ४०१, ४०५,
४०६ आहारक २९१ आहारदानविधि ६४३, ६४९, ७५९ . .
उत्सर्ग (औत्सर्गिक) लिंग आहारसंज्ञा २९५
- मुनियों का अचेललिंग उत्सर्ग लिंग
८, ९, १४, १०४, १४६ .
.- आर्यिकाओं का एकवस्त्रात्मक-लिंग इच्छाकार ६३८, ७५५
उत्सर्गलिंग ११, १२, १०४ इच्छापरिमाणवत २८७
- गृहस्थ से भिन्नत्व-ज्ञापक लिंग इच्छामि ७४०
उत्सर्गलिंग १० इत्सिंग (चीनी यात्री) ५०३ ।
- शुद्धोपयोग उत्सर्ग, शुभोपयोग अपवाद इन्द्र (रविषेण के गुरुओं के गुरु) ६४५
१५२ इन्द्र (छेदपिण्डकार) ७६९ .
- उत्सर्गसापेक्ष अपवाद, अपवादइन्द्रगुरु (श्वेताम्बर गुरु) ६४५
सापेक्ष उत्सर्ग १५२, १५३ इन्द्रदिन्न सूरि ५१९
उद्यापन ७४९ इन्द्रनन्दी (गोम्मटसार के कर्ता आ० नेमिचन्द्र ।
उद्योतनसूरि (श्वे०) ६४८ के गुरु) ७६९
उपचरित नग्न २७१, २७३ इन्द्रभूति गौतम : (गणधर) ६४६, ६४७,
उपचार नाग्न्य २७१, २७२ ७१७
उपचार-नाग्न्यपरीषह २७३ इसिभासिय (ऋषिभाषित) ७६, २५७
उपचार-निर्जरा २७३
उपचार-नैर्गन्थ्य (आर्यिकाओं में) १०५ उच्वनागर शाखा २८९, ३५१, ४१३ उपचारमोक्ष २७३ उज्जयिनी-महाकालमन्दिर-रुद्रलिंग ५१९
उपचारसंवर २७३ उत्कालिक ४०७
उपदेशतरङ्गिणी (हरिभद्रसूरि) २५६ उत्तरगुण ४९, १९९, २९०
उपवास प्रायश्चित्त ७७७
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