Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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-अपरनाम : दशसूत्र, जिनकल्पिसूत्र ७८७, ७८९-७९१
तत्त्वार्थसूत्र - हारिभद्रीयवृत्ति २६६, २७१२७३, २७६, ३१०, ३३२ तत्त्वार्थसूत्र का मंगलाचरण (पं० दरबारीलाल कोठिया) ५४३ तत्त्वार्थसूत्र - जैनागमसमन्वय ३९०, ३९१, ३९४, ४०६, ४०९, ४४५ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र (तत्त्वार्थसूत्र श्वेताम्बर
मान्य) २५७, २५९, २६२, २८७, २८८, २९४, ३०७, ३०९, ३१४, ३१७, ३१८, ३२१, ३२६, ३३६, ३८६, ३९८, ४२३, ६९४, ६९७ तत्त्वार्थाधिगमभाष्य (तत्त्वार्थभाष्य) २५३ -
२५५, २५९, २६३, २७०, ५७८, २७९, २८५, २८७, २९०, २९८, ३००, ३०७, ३१४, ३१७-३१९, ३२१, ३२२, ३२४, ३२७, ३२८, ३३१, ३३५, ३३६, ३३८-३४६, ३४८-३७५, ३७९, ३८१, ३८२, ४२४-४२६, ४४७, ४४८, ५०६, ६६७, ६९४ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र की सटिप्पण प्रति ३२४,
३२६ तालपलंबसुत्त (तालप्रलम्बसूत्र) ७, ८१८५
तित्थोगालियपयन्नु (तीर्थोद्गालिक ) ४६३ तिलोयपण्णत्ती (त्रिलोकप्रज्ञप्ति) १९३, २१९, २८१, ४३१-४५१, ४५३-४५८, ५६१-४६५, ६८०, ७२६, ७२९ तीर्थंकरगोत्र ७३९ तीर्थंकरप्रकृतिबन्धक - कारण (दि० - १६, श्वे० – २०) ६९४
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शब्दविशेष- सूची / ८०३
तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा ३, १६५, १९६, २३४ तीर्थंकरमाता द्वारा देखे जानेवाले स्वप्न (दि० – १६, श्वे० – १४) ६९४ तीर्थंकरीतीर्थसिद्ध (श्वे० मान्यता) २७८ तेरापन्थ (श्वेताम्बर) ७२ त्रिलक्षणकदर्थन ( पात्रकेसरी) ४९३ त्रिषष्टिशलाका - महापुराण (चामुण्डराय )
५८६
द
दंसणपाहुड (दर्शनप्राभृत) २४५, ४०९ - श्रुतसागरटीका ५०, १६६ (अपवादवेष), ४२१
—
दरबारीलाल कोठिया, न्यायाचार्य ( पं० ) ५४२, ५४३, ५७२, ६०५ दर्शनपरीषह (समवायांग) ४०८ दर्शनसार (आ० देवसेन) ५१० दलसुख मालवणिया ( पं० ) ३४७ दशरथ ६४२
दशवैकालिकसूत्र (श्वे०) ३१, ५२, ५३, १६२, १७०, २६९, ३६७ दशवैकालिकसूत्र (दिगम्बरीय) १७०-१७२ -श्रीविजयोदयाटीका (अपराजितसूरि)
१७०
दशसूत्र (बृहत्प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थसूत्र) ७८७,
७९१
दिगम्बर (जैनमुनि) ७५२ दिगम्बरगुरु- परम्परा ६९५, ६९६ दिग्नाग (बौद्धदार्शनिक) ४९४ दिग्वासस् ६३३
दिन्नसूरि ( श्वे० आचार्य) ५१९
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