Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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८१४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ विमलसूरि (श्वे० आचार्य) ६२९, ६७९ व्योमवासस् (दिगम्बरमुनि) ६३० विरती २२३
व्रतधारण (स्थितिकल्प) ६ विविधतीर्थकल्प (जिनप्रभसूरि) ४७२, ४७८ विशीर्णवस्त्रा ६६२
शतपदी (कर्ता-श्वे. मुनि श्री महेन्द्र सूरि) विशेषणवती (जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण) ७८९ ४८५, ४९७, ४९८, ५०६, ५०७
शय्यागृह ६ विशेषावश्यकभाष्य ११६, १३९, १६३, १८०,
शरीरविज्ञान ३५८ ४५२, ४९७, ५३५, ६२५
शाकटायन (पाल्यकीर्ति) (देखिये, 'पाल्य- हेमचन्द्रवृत्ति ११६, १७९, २५७, २६५,
कीर्ति') २६६, २७०, २७२, २७३
शाकटायन सूत्र (व्याकरण) ४६२, ६४५ विश्वलोचन कोश ५९७
शाकटायनसूत्र-न्यास (आ. प्रभाचन्द्र) ४२१,
४२२ विष्णुकुमार-कथानक (बृ.क.को.) ७४९,
शान्तिसागर जी (आचार्य) ९३ ७५१ विष्णुश्री-कथानक (बृ.क.को.) ७५९
शालाक्य (शल्यतन्त्र) ४७१ : वीरवर्धमानचरित (भट्टारक सकलकीर्ति)
शास्त्रवार्तासमुच्चय (हरिभद्रसूरि) ३२९ ७०३
शिक्षाव्रत ६७९ वीरसेन स्वामी (धवलाकार) १९३
शिवकोटि (शिवार्य/आदिपुराण १/४९) ५७
शिवकोटि (रत्नमाला ग्रन्थ के कर्ता) ५५७, वृक्षमूलयोग ६६१
६०५ वृत्तिपरिसंख्यान तप १८३, १८४
शिवभूति, शिवार्य और शिवकुमार (लेखवृत्तिपरिसंख्यानातिचार १८३
पं० परमानन्द जैन शास्त्री) ५७७ वृद्धवादी ४७९, ४८१, ५१९
शिवार्य (भगवती-आराधनाकार) ४, ८, वृद्धवादिप्रबन्ध ४८१
____६०, ४५८, ४५९, ६०६ वृन्दावनदास (कविवर) ७६, ८० ।
शूद्र ६८१ वेदत्रय ४१, १३८, २१८, ६१५, ७९१ शूरदेव (श्रावक) ७५९ वेदवैषम्य (श्वेताम्बरग्रंथों में) १३८ शैलक राजर्षि (ज्ञाताधर्मकथांग) ५२ वेदवैषम्य ४१, १८०
शौरसेनी प्राकृत १९७ वैरकुमारकथानक (बृ.क.को.) ७५० श्रमण (दिगम्बर मुनि) ७५१, ७५२ व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीसूत्र) ३९७-४०१, श्रमणा ६४१ ४०८, ४०९
श्रमणा अर्जिका ६५८, ६५९, ६७२ व्यास (वैदिक महर्षि) ६८०
श्रमणी २२३, २८४, ७६७
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