Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 874
________________ ४५२ ८१८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ सौधर्मेन्द्र ६४९ स्वयम्प्रभदेव (सीता का जीव) ७३० सौराष्ट्रदेश ७६२ स्वयम्भू (अपभ्रंश-पउमचरिउ के कर्ता) स्तिबुकसंक्रमण ७४२, ७४३ ६२९,६४७,६४८,७१७-७२८,७३०, स्तुतिग्रन्थ २४१ ७३१ स्तुतिविद्या (जिनशतक-समन्तभद्र स्वामी) स्वयम्भू राजा ७२३ स्वयम्भूस्तोत्र (समन्तभद्र) ४५१,४५४,५११, स्त्रीचेतस् (स्त्रीवेदी पुरुष, भावस्त्री) ५२५, ५१२, ५४७, ५४८, ६७७, ६८२, ५२६ ७२८ स्त्रीनामगोत्रकर्म, स्त्रीगोत्रकर्म, स्त्रीवेदनाम- स्वामिकुमार (स्वामी कार्तिकेय) ७४१ कर्म, स्त्र्यंगोपांगनामकर्म, स्त्रीशरीरां- स्वामी (समन्तभद्र की उपाधि) ५९२, ५९३ गोपांगनामकर्म ७४२, ७४३ स्वामी समन्तभद्र (ले०-जुगलकिशोर स्त्रीनिर्वाणप्रकरण (पाल्यकीर्ति शाकटायन) मुख्तार) ५०८, ५०९, ६१० ९, ३१, २०३, २०५, २१२, २८१, ४६२, ७९० हंसतेल ५४ स्त्रीमुक्तिनिषेध २४, १३२, २१०, २७८, एच० सी० भायाणी, डॉ० ७१७, ७१८, ४३५, ६४१, ६६५, ६८७, ७२०, ७२१, ७२३ ७२१, ७३५, ७५८, ७८३ हरिणिगमिसी, हरिणेगमेसि (नैगमदेव), स्त्रीलिंगसिद्ध (श्वे०) २७८ हरिनैगमेसि ७२७ स्त्रीवेदनोकषायकर्म ७४२, ७४३ हरिभद्रसूरि (श्वे० आचार्य) २७६ स्त्रीवेदी-पुरुषमुक्ति-मान्यता ५२३ हरिवंशपुराण ५१६, ६२०, ६५०, ६८७स्थविरकल्प (श्वेताम्बर) ७५३ ७१३, ७२७ स्थविरकल्प (अर्धफालकसंघ) ७४६ -प्रस्तावना (डॉ० पं० पन्नालाल स्थविरकल्पिक साधु (यापनीय) २०४ साहित्याचार्य) ६५०, ६५१ स्थानकवासी परम्परा (श्वे०) ७२ हरिषेण आचार्य (बृहत्कथाकोशकार) ८७, स्थानांगसूत्र २६४, २६९, २७३, ३९५-४०२, ६९९, ७३५, ७४१, ७४३, ७४७, ४०४, ४०६, ६२३ ७४८, ७५२, ७५४, ७५५, ७५६, स्थिति (नियोगतः = अनिवार्यतः पालन ७५७, ७६२ करने योग्य) ६ हरिषेण चक्रवर्ती ६४९ स्थितिकल्प (दश) ६ हर्मन जैकोबी, डॉ० (जर्मन विद्वान्) ४९२ स्थूलवृद्ध (जैनमुनि) ७५३ हस्तकश्रेष्ठि-कथानक (बृ.क.को.) ८७स्याद्वादरत्नाकर (वादिदेवसूरि) ५२० ९० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906