Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 878
________________ ८२२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ - श्रुतसागरसूरिकृत संस्कृतटीका। - पं० पन्नालाल साहित्याचार्यकृत हिन्दी अनुवाद।। ८. अष्टसहस्री (भाग १, २, ३) : आचार्य विद्यानन्द। दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर (मेरठ) उ० प्र०। ई० सन् १९९०।। ९. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन-मुनि श्री नगराज जी डी० लिट् । प्रथम खण्ड के प्रकाशक : कान्सेप्ट पब्लिशिंग कम्पनी, नई दिल्ली। ई० सन् १९८७। द्वितीय खण्ड के प्रकाशक : अर्हत् प्रकाशन, कलकत्ता। ई० सन् १९८२। १०. आचारांग (प्रथम श्रुतस्कन्ध) : मुम्बापुरीय श्री सिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति मुंबई। मुद्रण स्थान-सूरत। ई० सन् १९३५। - भद्रबाहुकृत नियुक्ति। - शीलांकाचार्यकृत वृत्ति। ११. आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध : अनुवादक-मुनिश्री सौभाग्यमल जी। प्रकाशक जैन साहित्य समिति, नयापुरा, उज्जैन। वि० सं० २००७ । द्वितीय श्रुतस्कन्ध : अनुवादक-पं० वसन्तीलाल नलवाया। प्रकाशक-धर्मदास जैन मित्रमण्डल, रतलाम, म० प्र०। ई० सन् १९८२। १२. आचारांगचूर्णि : श्री जिनदास गणी। श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम। ई० सन् १९४१। १३. आतुरप्रत्याख्यान : वीरभद्र। प्रकाशक-बालाभाई ककलभाई अहमदाबाद। वि० सं० १९६२। १४. आदिपुराण (भाग १,२) : आचार्य जिनसेन। भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली। ई० सन् १९८८। - अनुवाद : पं० (डॉ०) पन्नालाल साहित्याचार्य। १५. आप्तपरीक्षा : विद्यानन्द स्वामी। भारतवर्षीय अनेकान्त परिषद् , लोहारिया (राज०)। ई० सन् १९९२।। १६. आप्तमीमांसा : आचार्य समन्तभद्र। वीरसेवा मंदिर ट्रस्ट प्रकाशन वाराणसी-५। ई० सन् १९८९। - अनुवाद : पं० जुगलकिशोर मुख्तार। १७. आराधना कथा कोश : ब्रह्मचारी नेमिदत्त। भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद् । ई० सन् १९९३। १८. आलापपद्धति : आचार्य देवसेन। भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद् , लोहरिया (राज.)। ई. सन् १९९० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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