Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 895
________________ प्रयुक्त ग्रन्थों एवं शोधपत्रिकाओं की सूची / ८३९ २२२. यापनीय और उनका साहित्य : श्रीमती डॉ० कुसुम पटोरिया। वीर सेवा मन्दिर - ट्रस्ट प्रकाशन। ई० सन् १९८८।। २२३. रत्नकरण्डश्रावकाचार : स्वामी समन्तभद्र। श्री मुनिसंघ साहित्य प्रकाशन समिति, सागर म० प्र०। ई० सन् १९९२ । - पद्यानुवाद : आचार्य श्री विद्यासागर जी - हिन्दी अनुवाद : डॉ० (पं०) पन्नालाल जैन साहित्याचार्य। २२४. रत्नमाला : शिवकोटि। 'सिद्धान्तसारादि संग्रह' में संगृहीत। २२५. लब्धिसार (लब्धिसार-क्षपणासार) : नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती। आचार्य श्री शिव सागर ग्रन्थमाला, शान्तिवीर नगर, श्री महावीर जी। वीर नि० सं० २५०९। - सम्पादक : ब्र० पं० रतनचन्द्र मुख्तार सहारनपुर, उ० प्र०। २२६. ललितविस्तरा : आचार्य श्री हरिभद्रसूरि। - पञ्जिका टीका : श्री मुनिचन्द्र सूरीश्वर जी - हिन्दी-विवेचना : पंन्यासप्रवर श्री भानुविजय जी गणिवर। - भूमिकालेखक : श्री सम्पूर्णानन्द जी, राज्यपाल, राजस्थान। - परिचयलेखक : प्रो० डॉ० पी० एल० वैद्य, वाडिया कालेज, पूना। २२७. लाटीसंहिता : पं० राजमल्ल। श्रावकाचारसंग्रह (भाग ३)। सम्पादक : पं० हीरालाल जैन शास्त्री। जैनसंस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर । ई० सन् २००३। २२८. लिङ्गपुराण : संस्कर्ता : आचार्य जगदीश शास्त्री। मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली। ई० सन् १९८० । २२९: लिंगप्राभृत (लिंगापाहुड) : आचार्य कुन्दकुन्द। २३०. वरांगचरित : जटासिंहनन्दी। भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्पषिद्। ई० सन् १९९६ । २३१. वात्सल्यरत्नाकर (आचार्य श्री विमलसागर अभिनन्दन ग्रन्थ)-द्वितीय खण्ड। प्रकाशक : भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद् , श्री दि० जैन बीसपंथी कोठी, मधुवन (शिखर जी)। ई० सन् १९९३ । २३२. वायुपुराण : हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (इलाहाबाद)। ई० सन् १९८७। २३३. विद्वज्जनबोधक : पं० पन्नालाल जी संघी २३४. विधि-मार्ग-प्रपा : खरतरागच्छालंकार श्री जिनप्रभसूरि। श्री महावीर स्वामी जैन देरासर ट्रस्ट, ८ विजय वल्लभ चौक, पायुधनी, मुंबई-४००००३। ई० सन् २००५ । - अनुवाद : साध्वी सौम्यगुणाश्री (विधिप्रभा)। Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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