Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 894
________________ ८३८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ २०८. महाभारत (आदिपर्व/ अध्याय १-७) : श्री वेदव्यास। गीता प्रेस गोरखपुर (उ०प्र०)। नवम्बर १९५५ ई०। २०९. महाभारत (शान्तिपर्व) प्रकाशक : वसन्त श्रीपाद सातवलेकर। स्वाध्याय मण्डल, किल्ला-पारडी (बलसाड़) गुजरात। ई० सन् १९८० । २१०. महावग्गपालि (विनयपिटक) : सम्पादक-अनुवादक : स्वामी द्वारिकादास शास्त्री। बौद्ध भारती, वाराणसी। ई० सन् १९९८। २११. मानतुङ्गाचार्य और उनके स्तोत्र : प्रो० मधुसूदन ढाकी और डॉ. जितेन्द्र शाह। २१२. मानवभोज्यमीमांसा : मुनि कल्याणविजय जी गणी। श्री कल्याणविजय-शास्त्रसंग्रह समिति, जालोर (राज.)। ई० सन् १९६१ । २१३. मीमांसाश्लोकवार्तिक : कुमारिल भट्ट। २१४. मुद्राराक्षस (नाटक) : विशाखदत्त। ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली। २१५. मूलाचार (पूर्वार्ध एवं उत्तरार्ध) : आचार्य वट्टकेर। भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली। ई० सन् १९९२, १९९६ । - आचारवृत्ति : आचार्य वसुनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्ती। - हिन्दी-टीकानुवाद : आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी। - प्रधान सम्पादकीय : ज्योति प्रसाद जैन। २१६. मूलचार : आचार्य वट्टकेर। भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्। ई० सन् १९९६ । - सम्पादकीय : डॉ० फूलचन्द्र प्रेमी और डॉ० श्रीमती मुन्नी जैन। २१७. मूलाराधना (भगवती-आराधना) : शिवार्य। स्वामी देवेन्द्रकीर्ति दिगम्बर जैन ग्रन्थ माला शोलापुर। ई० सन् १९३५ । - मूलाराधनादर्पण (संस्कृतटीका) : पं० आशाधर जी। - हिन्दी-अर्थकर्ता : पं० जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री फड़कुले। २१८. मोक्षशास्त्र (तत्त्वार्थसूत्र, जिनकल्पिसूत्र) : आचार्य प्रभाचन्द्र। समीचीन धर्मप्रबोध संरक्षण संस्थान, कोटा (राजस्थान)। २१९. मोटी साधु-वन्दना (गुजराती) : छोटालाल जी महाराज। थानकवासी जैन उपाश्रय, लिमड़ी (सौराष्ट्र) ई० सन् १९९१ । २२०. मोहेन-जो-दड़ो : जैन परम्परा और प्रमाण : आचार्य विद्यानन्द जी। कुन्दकुन्द भारती, नयी दिल्ली । ई० सन् १९८८। २२१. यशस्तिलकचम्पू : सोमदेवसूरि। प्रकाशक : तुकाराम जावजी, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई। पूर्वखण्ड (द्वितीय संस्करण)। ई० सन् १९१६। उत्तरखण्ड (प्रथम संस्करण)। ई० सन् १९०३ । - संस्कृतव्याख्या : श्रुतसागरसूरि । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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