Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 898
________________ ८४२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ २५८. संस्कृत साहित्य का इतिहास : बलदेव उपाध्याय। शारदा मंदिर वाराणसी। ई० सन् १९६५। २५९. संस्कृत-हिन्दी कोश : वामन शिवराम आप्टे। मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली। ई० सन् १९६९। २६०. संस्कृति के चार अध्याय : रामधारी सिंह दिनकर। लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद-१। ई० सन् १९९७। २६१. समन्तभद्र ग्रन्थावली : स्वामी समन्तभद्र। वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट प्रकाशन वाराणसी। ई० सन् १९८९। १. आप्तमीमांसा (देवागम) - अकलंकदेवकृत आप्तमीमांसाभाष्य। - आचार्य वसुनन्दीकृत देवागमवृत्ति। - पं० जुगलकिशोर मुख्तारकृत हिन्दीव्याख्या। २. युक्त्यनुशासन। ३. स्वयम्भूस्तोत्र। ४. जिनशतक। ५. रत्नकरण्डक। - अनुवादक : पं० जुगलकिशोर मुख्तार २६२. समयसार : आचार्य कुन्दकुन्द। अहिंसा मंदिर प्रकाशन, १ दरियागंज, दिल्ली ७। - आत्मख्याति व्याख्या : आचार्य अमृतचन्द्र सूरि। - तात्पर्यवृत्ति : आचार्य जयसेन। - हिन्दीटीका : पं० जयचन्द। २६३. समावायांगसूत्र-प्रकाशक : सेठ माणेकलाल चुन्नीलाल, अहमदाबाद। ई० १९३८ । २६४. समाधितन्त्र : देवनन्दी, अपरनाम-पूज्यपादस्वामी। श्री वीरसेवा मंदिर, सरसावा (सहारनपुर)। ई० सन् १९३९ । २६५. सम्मइसुत्त (सन्मतिसूत्र, सन्मतितर्क) : आचार्य सिद्धसेन। ज्ञानोदय ग्रन्थ प्रकाशन समिति, नीमच (म० प्र०) ई० सन् १९७८ । - सम्पादक : देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच। २६६. सर्वार्थसिद्धि (तत्त्वार्थसूत्र-वृत्ति) : पूज्यपाद स्वामी। भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नयी दिल्ली। ई० सन् १९९५। - सम्पादन-अनुवाद : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री। २६७. सर्वार्थसिद्धि : पूज्यपाद स्वामी। भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद् । ई० सन् १९९५ । Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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