Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 889
________________ प्रयुक्त ग्रन्थों एवं शोधपत्रिकाओं की सूची / ८३३ १४५. पंचास्तिकाय : आचार्य कुन्दकुन्द। श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल, श्री मद्राजचन्द्र आश्रम अगास (गुजरात)। ई० सन् १९६९ । - समयव्याख्या (तत्त्वप्रदीपिका वृत्ति) : आचार्य अमृतचन्द्र। - तात्पर्यवृत्ति : आचार्य जयसेन। - बालावबोधभाषाटीका : पाण्डे हेमराज। १४६. पट्टावलीपराग : पं० श्री कल्याणविजय गणी। प्रकाशक : कल्याणविजय शास्त्रसंग्रह समिति, जालौर (राजस्थान)। ई० सन् १९५६। १४७. पं० रतनचन्द्र जैन मुख्तार : व्यक्तित्व और कृतित्व। आचार्य श्री शिवसागर दि० जैन ग्रन्थमाला शान्तिवीरनगर, श्रीमहावीर जी (राजस्थान) ई० सन् १९८९। १४८. पं० वंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ। सरस्वती-वरदपुत्र पं० वंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दनग्रन्थ प्रकाशन समिति, वाराणसी। ई० सन् १९८९। १४९. पण्णवणासुत्त (भाग १,२) : श्री श्यामार्य वाचक। श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई २६। ई० सन् १९६९ एवं १९७१ । - सम्पादन एवं अँगरेजी प्रस्तावना : मुनि पुण्यविजय जी, पं० दलसुख मालवणिया एवं पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक। १५०. पद्मपुराण (पद्मचरित-भाग १,२,३) : आचार्य रविषेण। भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली । ई० सन् २००१, २००२, २००३ । - सम्पादन-अनुवाद : डॉ० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य। १५१. पद्ममहापुराण (वैदिक = हिन्दू)-द्वितीय भाग (भूमि, स्वर्ग, ब्रह्य एवं पातालखण्ड) भूमिका : प्रो० डॉ० चारुदेवशास्त्री। प्रकाशक : नाग पब्लिशर्स, जवाहरनगर, दिल्ली-७। ई० सन् १९८४ । १५२. परमात्मप्रकाश एवं योगसार : जोइंदुदेव। परमश्रुत प्रभावक मंडल, अगास। ई० सन् १९७३। - संस्कृतटीका : ब्रह्मदेव।। - भाषा टीका : पं० दौलतराम जी। - प्रस्तावना (Introduction) : ए० एन० उपाध्ये। १५३. परिशिष्टपर्व : कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र। प्रकाशक : एशियाटिक सोसाइटी, ५७ पार्क स्ट्रीट, कलकत्ता। ई० सन् १८९१ । - सम्पादक : हर्मन जैकोबी। १५४. पाइअ-सह-महण्णवो : (प्राकृत-हिन्दी-शब्दकोश) : पं० हरगोविन्ददास त्रिकमचंद सेठ। मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली। ई० सन् १९८६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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