Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 872
________________ ८१६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ मोनियर विलिअम्स ) ८३, १२५, १७७ संस्तरारूढ़ ७८, ७९ सगर चक्रवर्ती ६४९ सगरपुत्र ७३० सङ्कटाप्रसाद उपाध्याय ( डॉ०) ७१७ संग्रहग्रन्थ २४१ संथारग (श्वे० ग्रन्थ) ६७ संशय मिथ्यादृष्टि ६४५ सटीक नयचक्र (मल्लवादी) ५०२, ५०३ सत् - द्रव्यास्तिक, उत्पन्नास्तिक, मातृका पदास्तिक, पर्यायास्तिक (तत्त्वार्थ - भाष्य ) ३५८ सत्साधुस्मरण-मंगलपाठ ५८८ सदासुखदास (पं०) ४२,७६,८०,१११ सन्थारा ६५९ सन्न्यासकाल (भक्तप्रत्याख्यानकाल) १०५ सन्मतिप्रकरण ४८०, ४८१, ५१४ सन्मतिसूत्र, सन्मतितर्क, सन्मति ४६९, ४७३, ४८०, ४८२, ४८५, ४८७-४९३, ४९६-५०३, ५०७,५०८, ५१०, ५१५, ५१७, ५२२, ५२५-५३१, ५३३-५३९, ६१७-६२६, ६७७ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन (लेख - पं० जुगलकिशोर मुख्तार) ४६९, ६०४ सप्तभंगी ५४१, ५४५, ५४६ समन्तभद्रग्रन्थावली ७२९ समन्तभद्र स्वामी ५०७-५१४, ५४०-५५२, ५५४-५५७, ५६३, ५६९, ५७४, ५७६, ५८३, ५८५ - ५९३, ५९६, ५९९, ६०१, ६०३-६१६ Jain Education International समयसार १६७, २४५, २४६, २४७, ३९५, ४०४, ४५९, ६७८ - तात्पर्यवृत्ति (आ० जयसेन) ७३८ समराइच्चकहा-प्रस्तावना (जैकोबी) ४९२ समवायांसूत्र २०९, २७७, ४०४, ४०५, ४०८, ४०९, ४५१ समाधितन्त्र (समाधिशतक) ५४६, ५६१ समीचीन धर्मशास्त्र ( पं० जुगलकिशोर मुख्तार) ५५९, ५९९ सम्बोधसत्तरी (रत्नशेखर सूरि, श्वे०) २५६ सम्यग्दर्शनी ३५८ सम्यग्व्यायाम (अधिगम ) ३५८ सर्वगुप्तगणी ६०, ६१, ४३२ सर्वनन्दी आचार्य ४३२, ४५८ सर्वश्रमण, नोसर्वश्रमण (श्वे०) ७७२, ७७८ सर्वार्थसिद्धि टीका ५८, १६७, २६६, २७५, २७८, २८६, २९२, ३००, ३०३, ३०५, ३२४, ३३२, ३३८-३६४, ३६८-३७०, ३७२, ३७९, ३८०, ३८८, ४२६, ५०१, ५०६, ५०८, ५४०, ५४२, ५४४, ५४७-५५६, ५७८, ५७९, ५९५, ५९६, ६११, ६२६, ६९७, ७०४, ७०५, ७८० सर्वार्थसिद्धि पर समन्तभद्र का प्रभाव (लेख - पं० जुगलकिशोर मुख्तार ) ५४०, ६११ सर्वार्धमागधी भाषा ७२९ सल्लेखना ६७९ सवस्त्रमुक्तिनिषेध ६, ११५, १४२, १९८, ४३३, ६५६, ६८९, ७५०, ७५४, ७५८, ७८३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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