Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 868
________________ ८१२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ ७६७, ७६८, ७७०, ७७१, ७७७, रत्नकरण्डश्रावकाचार २२८, ५५३, ५५४, ७७९, ७८७ ५५७-५६०,५७३,५७६-५८६,५८८, यापनीयग्रन्थ के लक्षण ५, ७५४ ५९१, ५९९, ६००, ६०३-६११, यापनीयतन्त्र (यापनीय सम्प्रदाय का प्रमुख ६१४-६१६, ६८२, ७४२ ग्रन्थ) ४६२ -प्रभाचन्द्रटीका ५९३, ६०९ यापनीय-यतिग्रामाग्रणी (उपाधि) ७९१ रत्नमाला (शिवकोटि) ५५६, ५७६, ५९९, यापनीयसंघ सचेलाचेलमार्गी ६०३-६०९ - स्थविरकल्पिक-मुक्ति मान्य २०४। रत्नसिंह सूरि (श्वे० आचार्य) ३२४, ३२६, - आचेलक्य मूलगुण अमान्य २०३ ३३१, ४२६ २१० रथ्यापुरुष १६८ युगपद्वाद, यौगपद्यवाद, युगपत्पक्ष (देखिये, रविषेण आचार्य ६२९-६३४, ६३६, ६३७, केवलि-उपयोगद्वय) ६३९, ६४१-६४३,६४५-६५०,७१७, युक्त्यनुशासन (समन्तभद्र) ५११, ५४९, . ७६९ ५५१, ६१३, ६१६ रहीम कवि २७७ योगचिकित्साविधि-न्याय २०६-२०८,७९० । राजकुल ७५० योगनिरोध (चतुर्थ शुक्लध्यान) ७३७ राजपिण्ड ६ योगसारप्राभृत (आचार्य अमितगति) ११० रात्रिभोजनत्याग (विरमण) व्रत १७३-१७५, योगी, योगीन्द्र (समन्तभद्र) ५९०, ५९१ . ७७८ योगाचार्यभूमिशास्त्र (मेत्रेयकृत बौद्धग्रन्थ) राम ६३४, ३४१, ३४९ ४९४ रामकथा ६४७ रामप्रसाद शास्त्री (पं०) ५४२ रइधू (महाकवि) ९२, ७०३ रामिल्ल (दि० जैन मुनि) ७५३ रघुनन्दन (राम) ६४० रायल एशियाटिक सोसायटी ४९४ रघूत्तम (राम) ६३५ राहुल सांकृत्यायन (पं०) ५०३, ५०४ रजोहरण १७८ रिट्ठणेमिचरिउ (स्वयंभूकृत) ७२७ रतनचन्द्र जैन मुख्तार (पण्डित) ७४२ ।। रत्नकरण्ड और आप्तमीमांसा का भिन्न रुक्मिणी ७३९, ७४०, ७४२ कर्तृत्व (लेख-प्रो० हीरालाल जैन) रूपकुम्भ मुनि ७४७ ५५७ रेवती-कथानक (बृ.क.को.) ७५९ रत्नकरण्ड के कर्तृत्व-विषय में मेरा विचार रोहिणी (राजा अशोक की महारानी) ७३८ और निर्णय (लेख-पं० जुगल- रोहिणी पुस्तक ७३६ किशोर मुख्तार) ५५७ रोहिणीव्रत ७३६, ७३८, ७४९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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