Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 867
________________ शब्दविशेष-सूची / ८११ मूलगुण २७ (श्वेता०, यापनीय मुनि) २०८, २०९, ७६६ यति ४३२, ४५८, ६७६, ६७७ मूल प्रायश्चित ७६६, ७७७ यतिग्रामाग्रणी (भदन्त शाकटायन) ४३२, मूलाचार ११०, १७२, १७४, १९३-२०३, ४५८, ६७६ २०७, २१०,२११,२१३-२२२, २२५, यतिवृषभ (आचार्य) ४३१, ४३२, ४४१, २२६-२३१, २३४-२४१, २४३ ४५४, ४५६-४६०, ६७६ २४९, ४०८, ४२५, ४८६, ६७७, __ यथाजातरूपधर २०१ ७०९, ७९० यथालन्दिक मुनि (देखिये, 'अथालन्दक') - आचारवृत्ति (आ० वसुनन्दी) १७२, यमपाश-कथानक (बृ.क.को.) ७५१ १९३, १९९, २०२, २११, २१६, यशस्तिलकचम्पू (सोमदेवसूरि) ६१०,६७८ २३९, २४१, २४३ यशोदा (तीर्थंकर महावीर की पत्नीमूलाचारटीका २२० श्वे०) ६६६, ७०२ मूलाचारप्रदीप २२० यशोधर-चन्द्रमती-कथानक (बृ.क.को.) मूलाचारसद्वृत्ति २२० ____७४५, ७४८, ७५१, ७५५, ७५६ मूलाराधना ३, १०५ यशोविजय (उपाध्याय, श्वे० मुनि) ४८३ मूलाराधनादर्पण ५६, १०५, १०८ यापनसंघक (यापनीयसंघ) ७६० मृगेशवर्मा (कदम्बवंश) ३७०, ४१५, यापनीय (मत, मुनि, आचार्य, संघ, सम्प्रदाय, ४१६ परम्परा) ३,५८, १९८, २०२-२०४, मृदुमति (ब्राह्मणपुत्र) ६३५ .. २०६, २१०, २१२, २१५, २१७मेतार्यमुनि-कथा (श्वेताम्बर) ८६-९१ २१९, २२१, २३३, ३७०, ४२३, मेतार्यमुनिकथा (दिगम्बर-बृ. क. को.) ६१७-६२१, ६२३-६२५, ७१७८७-९१ ७२०, ७२३, ७३१, ७४१, ७५९, मेरुतुङ्गाचार्य (प्रबन्धचिन्तामणि के कर्ता, ७६२ (उत्पत्तिस्थान), ७६९-७७२, श्वे०) ४७२ ७७५-७७९,७८२,७८७,७८९-७९१ मोक्खपाहुड ५६१ यापनीय और उनका साहित्य (श्रीमती डॉ० मोनियर मोनियर विलिअम्स संस्कृत-इंग्लिश कुसुम पटोरिया) ६१७, ६२३-६२६, डिक्शनरी ८३, १२५, १७७ ६४५-६४८,७०२,७११,७१२,७१७, मोहनलाल दुलीचन्द्र देसाई (श्वे० विद्वान्) ७२४,७२६-७२९,७३०,७३५,७३९, ६४४ ७४४, ७५८-७६० मौनव्रत के फल ७४७, ७४८ यापनीयग्रन्थ ३, १९७, २१९, २२२, २३८, म्लेच्छादि का उपद्रव १६६ २३९, २४४, ७३९, ७४१, ७६५, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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