Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 865
________________ बृहत्प्रभाचन्द्र (लघुतत्त्वार्थसूत्रकार) ७८७, ७८९-७९१ बोटिक, बोडिय (संघ, संम्प्रदाय) ३ बोधपाहुड २४५, ३९५ __ - श्रुतसागरटीका ५७, २१९, ४२१ बौद्धग्रन्थ ७५ ब्रह्मविद् ६८० ब्राह्मण ६८० भ भक्तपरिज्ञा (भत्तपरिण्णा) ६६, ६९, ७०, ७२, ७३, ७४ भक्तप्रत्याख्यान १२-१६, १०५ । भगवती-आराधना (देवेन्द्रकीर्ति दि. जैन ग्रन्थमाला, शोलापुर) ११२ भगवती-आराधना (विशम्बरदास --- • देहली) ४२, १११ भगवती-आराधना (जैन सं० सं० सं० सोलापुर) ३-५, ७-५१, ५४-६१, ६३-७६, ७८-८७, ९१, ९२, ९४११२,१५४-१६८,१७०,१७१, १७४, १७६-१८७,१८९,१९३, ४०८,४२४, ४२५, ४५९, ४६०, ६५९, ६७७, ६७८, ७११, ७४१, ७४४, ७८८ - विजयोदयाटीका (अपराजितसूरि)७२७, ३०-३८, ४१, ४५, ४७, ४९५१,७४,८१-८४,९६-१००,१०४, १०६-१०९, ११५-१४५, १४९१५१, १५४-१६५, १६८, १७०, १७६-१८१, १८३-१८६, १८८१९०, १९३, २६४, २६५, ४२३, ६५९ (अपराजिताटीका), ७८० शब्दविशेष-सूची / ८०९ -प्रस्तावना (पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री) ७२, ७८, ८०, ९२, ९५, ११२ भगवती-आराधना और उसकी टीकाएँ (लेख-नाथूराम प्रेमी) ६१, ६५, ८०, ८६, ९१ भगवती-आराधना-भाषावचनिका (पं० सदासुखदास जी) ५६ भगवती-आराधना और शिवकोटि (लेख पं० परमानन्द शास्त्री) ५८, ८५ भगवती सूत्र (देखिये, 'व्याख्याप्रज्ञाप्ति') भट्टारकसम्प्रदाय (ग्रन्थ-प्रो० जोहरापुरकर) ६९९ भट्टारकीय युग ६०९ भद्रबाहुकथानक (बृ.क.को.) ७००, ७४१, ७४६, ७५३, ७६०-७६२ भद्रबाहुचरित्र (महाकवि रइधू) ९२, ९३ भद्रबाहु द्वितीय (श्वे०, नियुक्तिकार) ४९६, ४९८, ४९९, ५५६, ६२५ भद्रबाहु श्रुतकेवली ९५ (ऊनोदरकष्टसहन) ४९८, ७६१ भद्राचार्य (दिगम्बर जैनमुनि) ७५३ भरत (ऋषभपुत्र, चक्रवर्ती) ६४९ भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट पूना ४७५ भायाणी एच०सी०डॉ० (देखिये, 'ह' वर्ण) भारतीयविद्या (पत्रिका) ५१३, ५२७ भावना (आचारांग का २४वाँ अध्ययन)१५७, १५९ भावपरिग्रह ४० भावपाहुड (भावप्राभृत) ३९५, ४०९ भावपूर्वविद् ४३६ भावसंग्रह (प्राकृत-देवसेन) २९२, ७८८ Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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