Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 864
________________ ८०८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ प्रत्युत्पन्ननय, प्रत्युत्पन्नग्राही नय ७०६ प्रवचनसारोद्धार (श्वे० ग्रन्थ) १३६, ४३८ प्रथम शुक्लध्यान १८८, १८९ प्रवर्तकाचार्य १९४ . प्रद्युम्नचरित ६४४ प्रवर्तनी ३५८ प्रबन्धकोश (राजशेखर) ४७२, ४७६ । प्रव्रज्या (निश्चय, उपचार) २३२ प्रबन्धचिन्तामणि (मेरुतुंगाचार्य) ४७२, ४७७ ।। प्रशमरतिप्रकरण (उमास्वाति, श्वे०) २५४ प्रभव स्वामी (श्वे० श्रुतकेवली) ६४६, प्रशस्तनिदान २६ ७२८ प्रशस्तलिङ्ग १४, १५० प्रभाचन्द्र आचार्य (प्रमेयकमलमार्तण्ड के प्राकृत साहित्य का इतिहास (डॉ० जगदीशकर्ता) ७६, ७७, २३३ चन्द्र जैन) ३९१ प्रभाचन्द्र-पण्डित (प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयी के प्रायश्चित्त (दशविध) ७६५ संस्कृतटीकार) ७७७ प्रायश्चित्तसंग्रह ७७६ प्रभावकचरित (प्रभाचन्द्रसूरि, श्वे०) ४७२, प्रियदर्शना (भ. महावीर की पुत्री-श्वे०) ४७६, ४८१, ५०३ ६६६ । प्रभावकचरित्र (आर्यरक्षित, श्वे०) १३९ प्रमाणसागर (मुनि) ४४६ बलदेव (श्री राम) ६४१ प्रमेयकमलमार्तण्ड (प्रभाचन्द्र) ७६, ७७, बलदेव (कृष्ण के भाई) ६५१, ७१२ २३३, २९२, ५४१ बसन्तीलाल नलवाया (पण्डित, श्वे०) ५२ प्रवचनपरीक्षा (स्वोपज्ञवृत्तिसहित) २२,१६४, बारस-अणुवेक्खा १६७, २४५, ४०५, ४०६ १७९, २०४, २६९, २७०, २७३, . बालचन्द्र (पं० शास्त्री) १९६ २९०, २९२, २९६, २९७ बालपण्डितमरण ४४ प्रवचनमाताएँ ६ बाह्यपरिग्रह ३१-३८ प्रवचनसार ३४, ७९, ११०, १६७, १९९, २२४, २४६, ३९७, ३९९, ४०३, बृहत्कथाकोश (आ० हरिषेण) ८७-९१, ७०१,७२७,७३५,७३९-७४१,७४३, ५४६, ५७२, ६८९ - तत्त्वदीपिका टीका (आचार्य अमृत ७४६,७४८-७५४,७५८-७६०,७६२ चन्द्र) २८६ बृहत्कथाकोशकार की त्रुटियाँ ७४३ - तात्पर्यवृत्ति (आचार्य जयसेन) १५२, बृहत्कल्पसूत्र ५, ८१, २८४ २२४, २२५, २३०, २९३, २९४, - लघुभाष्य (संघदासगणी) ७८, ८४, ७३८, ७६६ १६० - प्रस्तावना (अँगरेजी-डॉ० ए० एन० बृहत्क्षेत्रसमास (श्वे० ग्रन्थ) ४४७ उपाध्ये) ६५ बृहत्प्रतिक्रमण ७७७. Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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