Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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ल
लक्ष्मणसेन (रविषेण के गुरु) ६४५ लक्ष्मीमती - कथानक (बृ.क.को.) ७३९,
७४०, ७५६ ललितविस्तरा (हरिभद्रसूरि ) २८०, ४३६, ४३९
- पंजिकाटीका (चन्द्रसूरीश्वर ) २८०
—
लिंगपाहुड (कुन्दकुन्द) २४५
लोकविचय ( आचारांग का दूसरा अध्याय)
१५७
लोच (केशलोच) ४९
लोहार्य (लोहाचार्य) ६२, १९५
व
वज्रनन्दी (पूज्यपाद का शिष्य, द्राविड़संघसंस्थापक) ३७०, ५१० वट्टकेर (आचार्य) १९४-१९६, २००, २०१,
२११, २४५, ६२०, ६२४
वणिक् ६८१
वरदत्त केवली ६५८, ६७२, ६७३ वरांग, वरांगकुमार (राजा) ६५७-६६३ वरांगचरित (जटासिंहनन्दी ) १७२, १७३,
१८५, ५३८, ६४८, ६५५-६५८, ६६१-६७०, ६७२-६८३
वरांगी (सुन्दर अंगोंवाली) ६५८-६६०
वर्धमान ६४५, ६४७
वर्द्धमानपुर (बढ़वाण) ७०१ वर्षावास ५२
वलभी (वल्लभी, सौराष्ट्र) वाचना ७६२ वशिष्ठ ( वैदिक ऋषि) ६८० वसनसहितलिंग - धारी १५, १७
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शब्दविशेष- सूची / ८१३
वसन्तकीर्ति, दि० जैनाचार्य (आगमविरुद्ध अपवादवेष-प्रवर्तक) १६६
वसुदेव हिंडी (संघदास गणी) ६४४ वसुनन्दी आचार्य (सैद्धान्तिक ) १९३ वसुमती (कन्या) ७४७ वस्त्र (पाँच प्रकार के) ७६७ वस्त्रैषणा २७५
वाक्पदीय (भर्तृहरि) ५०३
वादऋद्धि, वादित्वऋद्धि २८१
वादन्याय ५०३, ५०४
वादिदेवसूरि ५२०
वादिराज सूरि ५८६, ५८७, ५८९, ५९२,
६०९
वादीभसिंह ५८८
वारिषेण ७५२ वासुदेव - कथानक (बृ.क.को.) ७५२ विक्रमादित्य ( सिद्धसेनदिवाकर- कालीन राजा / ६ - ७वीं शती ई०) ५१९ विजहना ४, ६८, ७१, ९१-९३ विद्याधर जोहरापुरकर (देखिये 'जोहरापुर - कर')
विद्याधर श्रेणियों में गुणस्थानों की संख्या
४५० विद्यानन्द स्वामी, आचार्य (तत्त्वार्थश्लोकवार्तिककार) ३७५, ५४२, ५४३, ५७९, ५९५, ५९६, ६०१
विद्यासागर आचार्य (मूकमाटी- महाकाव्य
कार) २७४ विद्युल्लतादि-कथानक (बृ.क.को.) ७५५,
७५९
विद्वान् ५७१, ५७२
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