Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 862
________________ ८०६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ न्यायकुमुदचन्द्र (आ० प्रभाचन्द्र) ४२१, पडिसंलीणया (प्रतिसंलीनता तप) ४०८ ५४१-५४५, ६०९ पण्णवणासुत्त (देखिये, 'प्रज्ञापनासूत्र') न्यायदीपिका ४५८ पद्यप्रबन्ध ४७६ न्यायप्रवेश ४९२ पद्म (श्री राम) ७२६ न्यायबिन्दु (धर्मकीर्ति, बौद्ध) ४९२, ५०३ पद्मनन्दी (कुन्दकुन्दाचार्य) ६३ न्यायविनिश्चय (अकलंकदेव) ४९४ ।। पद्मनाभ (पद्म-राम) ६४१ न्यायविनिश्चय-विवरण (वादिराज) ४९४ पद्मपुराण, पद्मचरित (रविषेण) ५२२,६००, न्यायावतार (श्वे० सिद्धसेन) ४७०, ४७३, ६२०, ६२९-६४४, ७१८ ४७९-४८२,४८७-४८९,४९२,४९५, पद्मप्रभमलधारिदेव ५१७ ४९६, ५०९, ५८०-५८२, ५९७, पद्मरथनृप-कथानक (बृ.क.को.) ७५२ ६०३-६०५, ६१७ पन्नालाल साहित्याचार्य (डॉ०, पं०) ६५०, - सिद्धर्षिटीका ५८० ७०३, ७०४, ७४२ न्यायावतारवार्तिकवृत्ति-प्रस्तावना (पं० । परतीर्थिक अन्यतीर्थिक, परशासन, अन्यदलसुख मालवणिया) ५५६, ६०४ लिंगी-मुक्तिनिषेध १३१, २१३, २५६, ४४०, ६४०, ६६७, ६९१, ७२१, पउमचरिउ (स्वयम्भू) ६२९, ७१७-७३१ ७५८, ७८३ पउमचरिय (विमलसूरि) २८८,६२९,६४८, परमानन्द (पं०, शास्त्री) ५८, १९६, ६४३ ६७९, ७२८ परमौदारिक शरीर २९३, २९८ पञ्चप्रतिक्रमण-भूमिका (पं० सुखलाल. परलिंग-मुक्तिनिषेध २९ संघवी) ६४ पराशर (वैदिक ऋषि) ६८० पञ्चमहागुरुभक्ति (कुन्दकुन्द) ७३ परिशिष्टपर्व (हेमचन्द्रसूरि) ७६१ पञ्चवस्तु (हरिभद्रसूरि) २४०,५१८,५३४, परिहारसंयम, परिहारसंयत १७७, १७९ ६१७ परीषहजयविधान ६६४ पञ्चसिद्धान्तिका (वराहमिहिर) ५०० । पर्यङ्कासन ६६२ पञ्चाश्चर्य ७५९ पर्युषणाकल्प ६ पञ्चास्तिकाय १६७, २४५, ३९४, ३९६, पाइअ-सद्द-महण्णवो ६२१, ७६६, ७७९ ३९७-४०१, ५४६ पाखण्डिमूढ ५९९ - तात्पर्यवृत्ति (आचार्य जयसेन) ७३८ पाखण्डी (पापं खण्डयतीति पाखण्डी) पट्टावली समुच्चय (मुनि दर्शनविजय जी) ५९९, ६०० ५१९ पाखण्डी (धूर्त, दम्भी-कपटी) ६००, ६०१ पट्टावलीसारोद्धार ५१९ पाणितलभोजी ४, ६३, ८५ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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