Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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नन्दिसूत्र (नन्दीसूत्र) ६९, ७०, ३९१, ३९४, ३९६, ४०७
नदिसूत्र की पट्टावली (स्थविरावलि) ४४२, ५१८
नन्दीश्वरभक्ति २९३ नदीसूत्र की हिन्दी विवेचना (लालमुनि जी एवं मुनि पारसकुमार जी ) ६९
नन्दीवृत्ति (आ० हरिभद्र ) ४८५ नन्द्यन्त नाम ५, ६२ नपुंसकवेदनोकषायकर्म ७४२, ७४३ नपुंसकशरीरांगोपांग नामकर्म ७४२, ७४३ नयसार ग्रामचिन्तक ( महावीर का प्रथम भव - श्वे०) ७५९
नाग (नागपुर का राजा) ७५० नागदत्तमुनि - कथानक (बृ.क.को.) ७५० नागपुर ७५०
नागश्री - कथानक (बृ.क.को.) ४५१, ७५७ नाग्न्य (लोकरूढ़नाग्न्य, मुख्यनाग्न्य, उपचरितनाग्न्य- विशे. भाष्य ) ३६७, ३७४
नाग्न्यलिंग १०४, २५८
नाग्न्यव्रत ६९०
नाथूराम प्रेमी, पं० ३, १५, ६०, ६१, ६३६५, ७६, ८० - ८२, ८५-८७, ९१, ९४, ९५, ९९-१०१, ११५, १७०, १७१, १९७, ४१९, ४२३-४२५, ६०१, ६४५, ७००, ७०१
नारद ६५०, ७११
नारद (अवद्वार) क्षुल्लक ६३९ नारद - पर्वत-कथानक (बृ.क.को.) ७५२
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शब्दविशेष- सूची / ८०५
निदर्शना अलंकार ३५३
नियमसार ७२, २४५, ३८८, ३९६, ३९८, ४००, ४०४, ५०७
निरम्बर २०१
निर्ग्रन्थ (नग्न) २०, २००, २०२, ४१५, ४१६, ६३२, ६३३, ६९०, ७५२, ७८२, ७८३ निर्ग्रन्थमहाश्रमणसंघ ३७०
निर्ग्रन्थशूर ६६३
निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) संघ, सम्प्रदाय, परम्परा ४१६
निर्ग्रन्थी (श्वे०) २८३, २८५, ३५८ निर्यापकगुरु, निर्यापकाचार्य ९७ नियुक्ति २४१, २४२, २४३ निशीथ : एक अध्ययन (दलसुख मालवणिया) ५२, ५३, ७८
निशीथचूर्णी ५३, ४७०, ५३४, ५३५ निशीथभाष्य ( विसाहगणि - महत्तर) ७८ निशीथसूत्र ५२-५४, १५७ निश्चयद्वात्रिंशिका ४८६, ४८७, ४८९-४९१ निश्चय - व्यवहार नय ( तत्त्वार्थभाष्य ) ३५८ निषीधिका ७८३
निह्नव ४९९ नीतिशतक (भर्तृहरि) २७७ नीतिसारपुराण (सिद्धसेन ) ४७१ नेमिचन्द्र (डॉ०, ज्योतिषाचार्य) १९४, १९६ नैगमदेव ( हरिणेगमेसि ) ७२७ नैगमनय (देशपरिक्षेपी, सर्वपरिक्षेपी-तत्त्वा. भाष्य ) ३५८
नैमित्तिक (भद्रबाहु-द्वितीय, श्वे० ) ४९८ नोकर्माहार २९१
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