Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 860
________________ ८०४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ दिवाकर मुनिपुंगव ६२४ दैगम्बरी दीक्षा ६३५, ६५७, ७५०, ७५१, दिवाकर, दिवाकरयति (सन्मतिसूत्रकार ७५३ सिद्धसेन) ५२१, ६४५ द्रव्यपरिग्रह ४० दिव्यध्वनि ७२९ द्राविड़संघ ५१० दिव्यध्वनि सर्वभाषात्मक ४५१ द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका ४७३, ४७४ द्वात्रिंशिकाएँ ४७०, ४८१, ४८२ दिव्यावदान (बौद्धग्रन्थ) ४१६ द्वात्रिंशिकाएँ (केवली-उपयोग-युगपद्वादी) दीक्षालिंग भक्तप्रत्याख्यानलिंग १०६, १०७ ४८४ दुर्विनीत (गंगवंशी राजा अविनीत का द्वात्रिंशिकाएँ (द्वितीय, पंचम) ५२४ उत्तराधिकारी, पूज्यपाद का द्वादशकल्प (बारह सौधर्मादि स्वर्ग) ३८२, शिष्य) ५१० ३८३, ३८४, ' दुःषमाकालश्रमणसंघ-स्तव ५१८ द्वादशवर्षीयदुर्भिक्ष ७४१, ७५३ देवकी (कृष्णमाता) ७२७ द्वादशारनयचक्र (मल्लवादी, श्वे०) ५०२ देवदूष्य वस्त्र १५९ द्वेष्य-श्वेतपट (न्यायावतार के कर्ता तथा देवर्द्धिगणि-क्षमाश्रमण २३५ । वृद्धवादी के शिष्य सिद्धसेन) ४९१, देवेन्द्र मुनि शास्त्री ६९ ५३६, ५३७, ६१९ द्रोणाचार्य ६८० देवेन्द्रस्तव (श्वे० ग्रन्थ) ६९ ध देशभूषण और कुलभूषण राजकुमार धनञ्जय-नाममाला ५९० ६३५ धम्मपद (बौद्धग्रन्थ) ७५ देशयति (देशव्रती, देशविरत, श्रावक) ७७२, धरसेन (आचार्य) ७४१ ७७३, ५८९ धर्मकथाग्रन्थ २४१ देशामर्शकसूत्र (देसामासियसुत्त-उपलक्षक धर्मकीर्ति (बौद्धाचार्य) ४९२ शब्द) ७, ८१-८५ धर्मक्षेत्र (कर्मभूमि) १७८ - 'तालप्रलम्ब' (तालपलंब) देशा- धर्मलाभ हो (आशीर्वचन-श्वेताम्बर, मर्शकसूत्र ७, ८१-८५ यापनीय) ६३९ - 'आचेलक्य' देशामर्शकसूत्र ७, ८, धर्मवृद्धि हो (आशीर्वाद-दिगम्बर) ६३८, ८१-८३ ६३९ - णमोकारमंत्र' देशामर्शक मंगलसूत्र धर्मोत्तर (बौद्धाचार्य) ४९२ ८४ धवलाटीका (देखिये, 'षट्खण्डागम') देशावकाशिकव्रत ६७९ धान्यकुमारमुनि-कथानक (बृ. क.को.)७५१ Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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