Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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अल्पचेलत्व २०० अवचूरि (श्वे. ग्रन्थ) ५१८ अवमौदर्य कष्ट ४ अवर्णवाद १६८, १६९, ३४७ अवसान (वस्त्ररहित) १७७ अविकारवत्थवेसा (आर्यिका) २८३ अविनीत (गंगवंशी राजा) ५१० । अशोकरोहिणी-कथानक (बृ.क.को.) ७३५,
७३६,७३८,७४०,७४३-७४६,७४९,
७५७, ७५८ अशोक-स्तम्भलेख ४१५ अष्टशती (अकलंकदेव) ४८४,५६४,५९१ अष्टसहस्री (विद्यानन्द स्वामी) ५४३,५४४,
५६४, ५६५, ५७१, ५७२ असत्यभाषण-कथानक (बृ.क.को.) ७४० अस्पर्शयोग ६६१ आगमविच्छेद ४४३, ४६३ आगमविच्छेद श्वेताम्बरपरम्परा में भी ४६३ आचार (चरण = आचरण) ९७ आचारजीत (आचार का क्रम) ९८ आचार, जीतकल्प ९५, २३८ आचारप्रणिधि (श्वे. दशवैकालिकसूत्र का
अध्ययन ८) १२५, १५६ आचारसार (वीरनन्दी) २२० आचारांग ४५, ५२,७०, २६३, २६४, २६७,
२६९, २८३, २८४, ६६६ - शीलांकाचार्यवृत्ति २५९ आचार्यपरम्परा (दिगम्बरमतानुसार) ४४२ ।। आचार्यपरम्परा (श्वेताम्बरमतानुसार) ४४२ ।। आचेलक्य ६, ७, ७४, १९८-२०२, ७६६, ।
७६७, ७७६, ७८२
शब्दविशेष-सूची / ७९५ आतापनयोग ६६१ आतुरप्रत्याख्यान, आउरपच्चक्खाण
(वीरभद्र) ६६, ६८-७२ आत्माराम (उपाध्याय, श्वे. मुनि) ३९० आदिपुराण १७३, ४५३, ६८१ आदिब्रह्मा ऋषभदेव ६८१ आपुलीसंघीय ७१७, ७१८ आप्तपरीक्षा (विद्यानन्द स्वामी) ३७५, ३७६,
५४२-५४४ आप्तमीमांसा (देवागम स्तोत्र) ४५४, ४८४,
५४३,५४४,५४७-५५०,५५६-५६०, ५६३,५६४,५६९-५७२,५७५,५७७, ५७८, ५८२, ५८३-५८६, ५९३,
६०३-६०८,६१४, ६१५ आरणाच्युतस्वर्ग ६४१ आराधनाकथाकोश (नेमिदत्त) ७०१ आराधनाकथाकोश (प्रभाचन्द्र) ७०१ आराधनानियुक्ति २३९ आराधनानियुक्ति (भगवती-आराधनागत)
२४१
आराधनापञ्जिका (भगवती-आराधना की
टीका) ५६ आराधनापताका (श्वे. ग्रन्थ) ६९ आर्यमंक्षु-नागहस्ती (दिगम्बर) ४५७ आर्यमंगु-आर्यनागहस्ती (श्वे.) ५१९ आर्या (आर्यिका) : २२३, ७५७ आर्यान्त नाम ५, ६२ आर्यिका ६३४, ७५६ आर्षमत ३८८ आलोचना ७७७
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