Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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८०० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ चामुण्डरायपुराण (त्रिषष्टिलक्षण महापुराण) जातस्वरूप ६३०, ६३१ ६४७
जातिनामकर्मोदय से मनुष्यजाति का एकत्व चारित्तपाहुड २४५, ४०२, ४०३, ४०५
६८१ चारित्रसार (चामुण्डराय) २२०, ६०२ जितशत्रु (राजा सिद्धार्थ के भगिनीपति) चेल (परिग्रह का उपलक्षण, देशामर्शकसूत्र) ७०२
जिनकल्प (दिगम्बर अचेललिंग का श्वेचेलोपसृष्ट मुनि (सामायिकरत श्रावक)५९१ ताम्बराचार्यों एवं बृहत्प्रभाचन्द्राचार्य चैत्यभक्ति ५३
द्वारा किया गया नामकरण) ७८७, चैत्यवास, वनवास ६०१
७८९ चैत्यवासी मुनि, वनवासी मुनि ६०१
जिनकल्पानुकारी (दिगम्बरमुनि) ७८९ चौंतीस अतिशय ७२९
जिनकल्पिसूत्र (बृहत्प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थ
सूत्र) ७८७, ७८९ चौदहपूर्वी ४४३
जिनकल्प-स्थविरकल्प (दिगम्बरमान्य)
१७६, १७७, ७८८, ७८९ छलवाद ६५६, ६५८, ६६२, ६८२
जिनकल्प-स्थविरकल्प (श्वेताम्बरमान्य) छेदपिण्ड (छेदपिण्डप्रायश्चित्त) ७६५-७७६
७६२ छेदशास्त्र ७६५, ७७६, ७७७
जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री फड़कुले (पं०) छेदसुत्त ७८४
९६, ११२
जिनप्रतिबिम्ब अचेललिंगधारी २० जटासिंहनन्दी (जाटिल मुनि) १७२, ४४४,
जिनबिम्बप्रतिष्ठा ६७१, ६७४ ६४८,६५५-६५८,६५९,६६३,६६८,
जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण ६२५ ६७१, ६७२, ६७४-६८१
जिनभाषित (जिनोपदिष्ट) ६३५ जन्नकवि (कन्नड़) १७२
जिनविजय (श्वे० मुनि) ५०४ जन्मना वर्णव्यवस्था ६८०
जिनशतक (समन्तभद्र) ५८८ जम्बूविजय (श्वे० मुनि) ५०३ -
जिनसेन आचार्य (हरिवंशपुराणकार) ६८७, जम्बूस्वामी ४४३, ६४७
६९३, ६९५, ६९६, ६९९-७०२ जयधवलाटीका ३४१, ४४३, ४५१, ४७०,
जीत (अवश्य करने योग्य आचरण) ९७ ७३७
जीतकल्प (करण = षडावश्यक) ९६, ९७ जयन्त स्वर्ग ४३८
जीतकल्पचूर्णि-विषमपदव्याख्या (चन्द्रसूरि) जयसेन आचार्य २२४
४६९, ६२० जातक (बौद्धग्रन्थ) ७५
जीतकल्पभाष्य (जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण) जातरूप, जातरूपधर ६३४, ६६०, ६६१
७६, ७८, २३३
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