Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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७९४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
५७७, ५७९, ५८२, ५८६, ५८८५९०, ५९३ - ५९५, ६०३, ६०५ -६०७, ६०९-६१३, ६१५, ६१६ अनेकाम्बरसंवीता (श्वेताम्बर आर्यिका )
७०९
अन्तरद्वीप ४२५, ४४५, ४४६, ६९५ अन्ध- पंगुकथा ६७८
अन्धलक- घोटक - न्याय २३७ अन्यतीर्थिक (अन्यधर्मावलम्बी ) ७६६ अन्यलिंगिमुक्ति-निषेध (देखिये, परतीर्थिकमुक्ति-निषेध)
अपदान (बौद्धग्रन्थ) ४१६ अपराजितसूरि (विजयोदयाटीकाकार) ४,
११, १६-१८, २० - २४, २७, ६३, १०४, १०८ - ११२, ११५ - १४६, १४८, १४९, १५३-१७५, १८०-१८६, १८८, १८९, ४२३ - ४२५
अपराजित स्वर्ग ४३८
अपरिग्रह २८५ अपरिग्रहमहाव्रत-भंग
प्रायश्चित्त ७६७
अपरिग्रह - महाव्रत में वस्त्रग्रहण का निषेध
७७९, ७८१.
अपवाद (परिग्रह ) ९, १४१ अपवाद (आपवादिक) लिंग
१. भ्रष्ट दिगम्बर जैन मुनि का अस्थायी सचेललिंग १६५, १६६
२. श्रावक का सवस्त्रलिंग ८ - २४, १४१ - १५४
३. श्राविका का बहुवस्त्रात्मकलिंग
११-१३
४. मुनि के लिए अपवाद ( निन्दा) का कारणभूत लिंग ८, १९
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५. गृहिभावसूचकलिंग ९ ६. मुक्ति के लिए त्याज्यलिंग १० ७. यापनीय मुनि का सचेललिंग
२०४-२०६, ६५९
अपवाद और विकल्प में भेद १४७ अपायानुप्रेक्षा ४०६
अभयदेव सूरि (सन्मतिसूत्रटीकाकार) ४७३, ४८३, ४९७
अभिग्रहविधान ५४ अभिधानचिन्तामणि (हेमचन्द्र) ७२६ अभिधान राजेन्द्र कोष १७६, २४०, २५५ अभिनवधर्मभूषण यति ४५८, ६७६ अभेदवाद (एकोपयोगवाद) : (देखिये, केवलि - उपयोगद्वय)
अभ्यन्तर परिग्रह ३९, ३२ अभ्युपगमवाद ४८५ अभ्रावकाशयोग ६५७, ६६१ अमरचन्द्र दीवान ७७, ८० अमितगति आचार्य ३, ५६ अमितसेन (पुन्नाटसंघाग्रणी ) ७०० अमितास्रव मुनि ७३६ अमृतचन्द्र आचार्य ७९१
अमोघवृत्ति (पाल्यकीर्ति शाकटायन) ६१ अयाचनापरीषहजय (श्वे०) २७५, २७६. अर्धफालक (वस्त्र का आधा टुकड़ा) ७५३, ७५४, ७६१
अर्धफालक (साधु, संघ, सम्प्रदाय) ७४६, ७५३, ७६०
अर्धमागधी १९७, ४५१
अर्हमुनि (रविषेण के दादा गुरु ) ६४५ अलङ्कारचिन्तामणि ५१७
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