Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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- शब्दविशेष-सूची / ७९७
उमास्वाति २५३, २५४, २८९, ३२५, ३२९,
३७३, ३७५,३७७-३८१,४२५,५४२,
५४३ उमास्वामी (उमाप्रभु) ३७६, ३७७, ३७९-
३८९ उपासकाध्ययन (यशस्तिलकचम्पू के अन्तर्गत)
६०२ उपकप्पेंति (उपकल्पयन्ति) ७८, ७९ ऋषभ (देव) ६४९ ऋषिभाषित (देखिये, 'इसिभासिय')
एकान्त-अचेलमार्गी-समान-आचार्यपरम्परा
६६ एकान्त-अचेलमुक्तिवाद १६७ एकान्त (ऐकान्तिक) अचेलमुक्तिवादी - (अचेलमार्गी) निर्ग्रन्थसंघ (मूलसंघ,
दिगम्बरपरम्परा) ६७ एकाम्बरसंवीता (एकवस्त्रधारिणी = आर्यिका)
७०९ एकोरुक द्वीप ४२५ एकोरुक मनुष्य ४२५ ए० एन० उपाध्ये (आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये)
६५, १९४, १९६, ४२२, ६१७-६२० एलक ७७५ एशियाटिक सोसाइटी कलकत्ता ४७५ एषणाएँ (श्वे० साधुओं के लिए विहित) - पिण्डैषणा, शय्यैषणा, वस्त्रैषणा,
पात्रैषणा, अवग्रहैषणा २७५ एषणीय वस्त्रधारण २७२
औ औदार्यचिन्तामणि (व्याकरणग्रन्थ) ३७९
कटकाभरण जिनालय ६२४ कण्ठ (वैदिक ऋषि) ६८० कण्डूर् (काण्डूर, काडूर) गण १७३,७६८,
७८३ कथावतार की दिगम्बरपद्धति ६४३, ७१७,
७१८ कमठ ६८० करकंडुचरिउ (कनकामर मुनि) ५१७ करञ्जजालिका (पिच्छी) ६३८ करण (षडावश्यक) ९७ कर्कण्ड-महाराज-कथानक (बृ.क.को.)
७५१ कर्णामृतपुराण ४७१ कर्नाटक (कर्णाटक) ६२०, ६२४ कर्मणा वर्णव्यवस्था ६८०, ६८१ कल्प ('कल्प' नामक स्वर्ग) ६४३, ६८०,
६९३, ७१९ कल्प (साधुओं का आचार) ६, ९७ कल्पसंख्या २१७, ४४४ कल्पनियुक्ति (कल्पसूत्रनियुक्ति) ७८ कल्पव्यवहारधारी (कप्पववहारधारी) ९९ कल्पसूत्र ४५, ५०-५२, ७०, १३९
- कल्पकौमुदीटीका ९६ - कल्पप्रदीपिकावृत्ति ९७
- स्थविरावली (थेरावली) ५१८ कल्प्यगुण (योग्य गुण) ९८ कल्याणकारक (वैद्यक ग्रन्थ) ४७१ कल्याणमन्दिर (ग्रन्थ) ४७२ कल्याणमन्दिर स्तोत्र (कुमुदचन्द्राचार्य) ४७२,
४८१, ५१९
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