Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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शब्दविशेष-सूची तृतीयखण्डान्तर्गत त्रयोदश अध्याय से लेकर पञ्चविंश अध्याय तक आये विशिष्ट शब्दों (व्यक्तियों, स्थानों, ग्रन्थों, लेखों, अभिलेखों, कथाओं, सम्प्रदायों, गणगच्छों इत्यादि के वाचक तथा पारिभाषिक शब्दों) की सूची नीचे दी जा रही है। इसमें पादटिप्पणीगत शब्द भी समाविष्ट हैं। दो पृष्ठाकों के बीच में प्रयुक्त योजक-चिह्न (-) बीच के पृष्ठों का सूचक है।
अ अकलङ्कग्रन्थत्रय ५४१, ५४३ अकलङ्कदेव (भट्ट) ३४७, ४९४, ५०६,
५०७, ५५५, ५७९, ५८२, ५९५,
५९६, ६२६ अकलंकचरित ४९७ अखिल भारतवर्षीय प्राच्य सम्मेलन,
१२वाँ अधिवेशन बनारस,
(जनवरी १९४४) ५५७ अग्रधर्म (मुनिधर्म) ६४० अचेलत्व, (ता) ७८९ अचेलपरीषह ४०८ अचेलव्रतभंग के प्रायश्चित्त ७६६, ७७७ अणुधर्म (श्रावकधर्म) ६४० अतिवीर्य राजा ६३५ अथालन्दक, अथालन्दिक, यथालन्दिक
मुनि १७५ अथालन्दसंयम (श्वेताम्बरमतानुसार) १७५,
१७६, १७७-१८१ अथालन्दसंयम (दिगम्बरमतानुसार)
१७७-१८१
अदर्शनपरीषह ४०८ अदिगम्बरीय मान्यताएँ ७३० अद्धासमय (काल) ३२२, ३८६, ३८७,
४४८ . अनगारधर्म २८४ अनगारधर्मामृत (पं० आशाधर) २२०, ३३४ अनवद्या (भ० महावीर की पुत्री-श्वे०)
६६६ अनस्तमित भोजन (अन्थउ) ७३० अनाहारक २९१, २९५ अनुत्तरवाग्मी कीर्ति ६४६, ६४७ अनुदिश (स्वर्ग ९) २१८, ४४५, ६९३ अनुयोग (चार)-दिग. एवं श्वे. मतों के
अनुसार १३९, ६४३ अनुयोग (निरूपणद्वार) १०० अनुयोगद्वारसूत्र ५, ३९१-३९५, ४०७ अनेकान्तजयपताका ५०४ अनेकान्त (मासिक पत्र) ५८, ६५, ८०,
८५, ८६, ९१, १९६, ३२४, ३७०, ४१९, ४४५, ५०९, ५४०, ५५७, ५६५,५६६,५६८,५७०-५७३,५७६,
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