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अ०१९/प्र०२
रविषेणकृत पद्मपुराण / ६४९
यापनीयपक्ष
"रविषेण के (पद्मपुराण में) कई उल्लेख दिगम्बर-परम्परा के विपरीत हैं। गन्धर्वदेवों को मद्यपी (१७ / २६८) तथा यक्ष-राक्षसादिकों को कवलाहारी मानना (९४/२७१) दिगम्बर-परम्परा के विपरीत है। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार १३ वें से १६वें स्वर्ग के देव चित्रा पृथिवी के उपरिम तल से नीचे नहीं जाते। १२ परन्तु पद्मचरित (पर्व १२३) में सोलहवें स्वर्ग के प्रतीन्द्र के रूप में जन्मे सीता के जीव का रावण को सम्बोधित करने के लिए नरकगमन बताया गया है।" (या. औ. उ. सा./पृ. १४८)।
__ "पद्मचरित (पद्मपुराण) में यह उल्लेख है कि भरत चक्रवर्ती मुनियों के निमित्त से बने आहार को लेकर समवशरण में पहुँचे और मुनियों से आहार के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान् ऋषभदेव ने बताया कि मुनि उद्दिष्ट भोजन नहीं करते और न आहार की ऐसी रीति है।" (४/९१)। यह उल्लेख भी दिगम्बरपरम्परा के विपरीत है। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक बाते हैं, जो गुणभद्र की कथा के विरुद्ध हैं। यथा
१. "सगर चक्रवर्ती के पूर्वभव तथा उनके पुत्रों का नागकुमार देव के कोप से भस्म होना।
२. हरिषेण चक्रवर्ती की मोक्षगति (पर्व ८)।
३. मघवा चक्रवर्ती को सौधर्म स्वर्ग की प्राप्ति तथा चक्री सनत्कुमार को तीसरे स्वर्ग की प्राप्ति।
४. भगवान् महावीर द्वारा सौधर्मेन्द्र की शंका के निवारणार्थ पादांगुष्ठ से मेरु को कम्पित करना (२/७६)।
५. राम और कृष्ण के बीच ६४ हजार वर्षों का अन्तर।
ये अनेक कारण रविषेण के दिगम्बर आचार्य होने में शंका उपस्थित करते हैं।" (या.औ.उ.सा./पृ. १४९)। दिगम्बरपक्ष
भगवान् ऋषभदेव ने उद्दिष्ट भोजन के विषय में जो बात कही है, वह तो दिगम्बरपरम्परा को ही बतलाने के लिए कही गई है। इससे तो पद्मपुराण दिगम्बर-परम्परा का ही ग्रन्थ सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त पर्व १२० (श्लोक १५-१८) तथा पर्व १२१ (श्लोक ११-२५) में भी मुनियों के आहारदान की विधि दिगम्बर-परम्परानुसार ही वर्णित की गयी है। अतः पद्मपुराण को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिए उसमें
१२. धवला/ष.खं./ पु. ४/१,४,५४/ पृ.२३९।
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