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अ० २२ / प्र०२
स्वयम्भूकृत पउमचरिउ / ७२७ फिर भी विमलसूरि ने राम के लिए 'पद्म' नाम का प्रयोग किया है और दिगम्बर रविषेण तथा स्वयम्भू ने भी ऐसा ही किया है। इससे सिद्ध होता है कि दिगम्बरश्वेताम्बर-भेद से पहले जैनपरम्परा में 'पद्म' नाम भी राम के लिए प्रसिद्ध था। इसी कारण दोनों परम्पराओं के पुराणकारों ने इस नाम का प्रयोग किया है। यतः यह नाम दोनों परम्पराओं में प्रयुक्त हुआ है, अतः यह यापनीयग्रन्थ का असाधारणधर्म नहीं है। फलस्वरूप यह 'पउमचरिउ' के यापनीयग्रन्थ होने का हेतु नहीं है, इससे सिद्ध है कि यह हेत्वाभास है।
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दिगम्बरपरम्परा में भी नैगमदेव मान्य यापनीयपक्ष
स्वयंभू के एक अन्य ग्रन्थ रिट्ठणेमिचरिउ में उल्लेख है कि देवकी ने भाई के घर में क्रम से तीन युगलों के रूप में छह पुत्रों को जन्म दिया, जिन्हें कंस से बचाने के लिए इन्द्र की आज्ञा से नैगमदेव सुभदिल नगर के सुदृष्टि सेठ के घर पहुँचाता रहा और उसके मृत पुत्रों को देवकी के पास लाकर छोड़ता रहा। यद्यपि यह उल्लेख आचार्य गुणभद्र ने भी अपने उत्तरपुराण (७१/२९५) में किया है, तथापि हरिणेगमेसि (नैगमदेव) का यह उल्लेख श्वेताम्बर-परम्परा के अनुरूप है।--- पुन्नाटसंघीय जिनसेन के हरिवंशपुराण (३५/४) तथा हरिषेण के बृहत्कथाकोश (उग्रसेन-वशिष्ठ-कथानक १०६/२२५) में भी नैगमदेव का देवकी के पुत्रों के रक्षकरूप में उल्लेख है। अतः जिनसेन और हरिषेण के समान स्वयंभू भी यापनीय हैं। (या.
औ.उ.सा./पृ.१५५-१५६)। दिगम्बरपक्ष
स्वयम्भू ने 'पउमचरिउ' में, जिनसेन ने 'हरिवंशपुराण' में तथा हरिषेण ने 'बृहत्कथा-कोश' में सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति आदि यापनीय-मान्यताओं का निषेध किया है, अतः ये दिगम्बरग्रन्थ हैं, यह सिद्ध किया जा चुका है। 'बृहत्कथाकोश' के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण आगे तेईसवें अध्याय में प्रस्तुत किये जायेंगे। गुणभद्र का उत्तरपुराण भी दिगम्बर-परम्परा का ग्रन्थ है। इन सब में (स्वयंभू के 'रिट्ठणेमिचरिउ' में भी) नैगमदेव का देवकीपुत्रों के रक्षकरूप में उल्लेख है। इसलिए इस उल्लेख को केवल श्वेताम्बरपरम्परा के अनुरूप मानना सत्य नहीं है। यतः यह श्वेताम्बरपरम्परा का असाधारण धर्म नहीं है, इसलिए यह उल्लेख स्वयम्भूकृत 'रिट्ठणेमिचरिउ' के यापनीयग्रन्थ एवं स्वयम्भू के यापनीय होने का हेतु नहीं है, अतः सिद्ध है कि यह हेत्वाभास
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