Book Title: Jain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 814
________________ ७५८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ यापनीयपक्ष बाह्यमाभ्यन्तरं सङ्गं हित्वा सर्वं विशुद्धधीः । जग्राह श्रीधराभ्याशे शुभ्रकीर्तिनृपस्तपः ॥ ४४८ ॥ अशोक - रोहिणी - कथानक / क्र.५७ । हित्वाऽनन्तबलस्तदा । दैगम्बरीमरम् ॥ ३४॥ बाह्यमाभ्यन्तरं सङ्गं दधौ सागरसेनान्ते दीक्षां इन दस प्रमाणों से सिद्ध है कि बृहत्कथाकोश में सवस्त्रमुक्ति का निषेध अनेक द्वारों से किया गया है और केवल दैगम्बरी दीक्षा ही मोक्ष का मार्ग बतलायी गयी है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हरिषेण सवस्त्र अपवादलिंगधारी स्थविरकल्पी मुनियों, स्त्रियों, गृहस्थों और अन्यलिंगियों, इन सभी की मुक्ति के विरोधी हैं, क्योंकि ये सभी वस्त्रधारी होते हैं । Jain Education International अ० २३ ४ भगवती आराधना दिगम्बरग्रन्थ गजकुमार- कथानक / क्र. १३९ । यापनीयपक्षधर ग्रन्थद्वय के लेखक-लेखिका ने बृहत्कथाकोश को यापनीय ग्रन्थ मानने के पक्ष में एक हेतु यह बतलाया है कि इसकी कथाएँ भगवती - आराधना पर आधारित हैं और भगवती - आराधना यापनीयमत का ग्रन्थ है, इसलिए बृहत्कथाकोश भी यापनीयग्रन्थ है। (या. औ. उ. सा. / पृ. १५२, जै. ध. या. स. / पृ. १६५) । दिगम्बरपक्ष यह पूर्व में सिद्ध किया जा चुका है कि भगवती आराधना यापनीयग्रन्थ नहीं, अपितु दिगम्बरग्रन्थ है। इसलिए बृहत्कथाकोश को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया गया उपर्युक्त हेतु मिथ्या है।. ५ पुन्नाटसंघ : दिगम्बरसंघ यापनीयपक्ष ‘जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ के लेखक का कथन है कि हरिषेण पुन्नाटसंघीय थे और पुन्नाटसंघ की उत्पत्ति यापनीयों के पुन्नागवृक्षमूलगण से हुई थी, अतः हरिषेण यापनीय थे । (पृ.१६६ ) । ' यापनीय और उनका साहित्य' ग्रन्थ की लेखिका लिखती हैं कि बृहत्कथाकोश में स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति जैसे सिद्धान्तों का समर्थन पुन्नाटसंघ के यापनीय होने का प्रबल प्रमाण है । (पृ.१५३)। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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