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छेदपिण्ड, छेदशास्त्र एवं प्रतिक्रमण-ग्रन्थत्रयी / ७६९
रविषेण दिगम्बराचार्य हैं यापनीयपक्ष
___ रविषेण ने 'पद्मचरित' में अपनी गुरुपरम्परा में इन्द्र, दिवाकरयति, अर्हन्मुनि और लक्ष्मणसेन के नामों का उल्लेख किया है। रविषेण यापनीय थे, इसलिए उनके गुरु 'छेदपिण्डकर्ता' इन्द्र का भी यापनीय होना स्वाभाविक है। (जै. ध. या. स./पृ. १४५)। दिगम्बरपक्ष
रविषेण दिगम्बराचार्य थे, यह १९वें अध्याय में प्रमाणित किया जा चुका है। अतः यदि उनके गुरुओं के गुरु इन्द्र 'छेदपिण्ड' के कर्ता थे, तो उनका भी दिगम्बर होना सुनिश्चित है। इस प्रकार भी 'छेदपिण्ड' दिगम्बराचार्यकृत ही सिद्ध होता है।
छेदपिण्ड के कर्ता इन्द्र यापनीय नहीं यापनीयपक्ष
यापनीयसंघी पाल्यकीर्ति शाकटायन ने अपने सूत्रपाठ में इन्द्र का उल्लेख किया है। पाल्यकीर्ति यापनीय थे, अत: उनके गुरु इन्द्र भी यापनीय रहे होंगे। (जै.ध.या.स./ पृ.१४५)। दिगम्बरपक्ष
ये यापनीय हो सकते हैं, किन्तु 'छेदपिण्ड' के कर्ता नहीं, क्योंकि उसमें मुनियों के दिगम्बरसम्मत २८ मूलगुणों का वर्णन है, जो यापनीयमत के विरुद्ध हैं।
गोम्मटसार के कर्ता के गुरु इन्द्रनन्दी दिगम्बर यापनीयपक्ष
गोम्मटसार के कर्ता आचार्य नेमिचन्द्र ने कर्मकाण्ड की गाथा क्र० ७८५ में इन्द्रनन्दी गुरु को नमस्कार किया है। संभवतः ये ही यापनीयसंघी और छेदपिण्ड के कर्ता थे। (जै. ध. या. स./पृ. १४८)। दिगम्बरपक्ष
गोम्मटसार के कर्ता आचार्य नेमिचन्द्र ने जिन इन्द्रनन्दी गुरु को प्रणाम किया है, यदि उन्हें 'छेदपिण्ड' का कर्ता स्वीकार किया जाय, तो वे यापनीय किसी भी
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