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अ० २३
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सवस्त्रमुक्तिनिषेध
यापनीयपक्ष
'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ के लेखक ने बृहत्कथाकोश में सवस्त्रमुक्ति का उल्लेख सिद्ध करने के लिए पृ. १६९ पर अशोक - रोहिणी - कथानक (क्र.५७) का निम्नलिखित श्लोक उद्धृत किया है
ततः समस्तसङ्घस्य वस्त्रादिदानं च
देयं
बृहत्कथाकोश / ७४९
देहिभिर्भक्तितत्परैः। कर्मक्षयनिमित्ततः ॥ ५५४ ॥
अनुवाद - " मौनव्रत सम्पन्न होने पर उसका उद्यापन करने के लिए कर्मक्ष के प्रयोजन से समस्त संघ को वस्त्रादि का दान करना चाहिए ।
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यापनीयपक्षधर ग्रन्थलेखक के
कथन का अभिप्राय यह है कि समस्त संघ मुनि भी आ जाते हैं, अतः मुनियों के लिए वस्त्रदान का उल्लेख होने से बृहत्कथाकोश में सवस्त्रमुक्ति अर्थात् स्थविरकल्प को मान्यता दी गई है।
दिगम्बरपक्ष
यहाँ भी मान्य ग्रन्थलेखक ने पूर्वापर कथनों पर ध्यान दिये बिना ही निर्णय घोषित कर दिया है।
इसके पूर्व इसी अशोकरोहिणीकथानक ( क्र. ५७) में कहा गया है कि रोहिणी व्रत की समाप्ति पर चतुर्विध संघ को यथायोग्य आहार, औषधि और वस्त्रादि का दान करना चाहिए—
पश्चादाहारदानं च भेषजं वसनादिकम् ।
चतुर्विधस्य सङ्घस्य यथायोग्यं विधीयते ॥ २३४॥
यहाँ यथायोग्य शब्द का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है । 'यथायोग्य' का अर्थ है जिसके लिए जिस वस्तु का दान योग्य है, उसे उस वस्तु का दान करना । इससे सारी बात स्पष्ट हो जाती है। वह यह कि चूँकि मुनि नग्न होते हैं ( श्रमणा नग्नरूपिणः ) १३ अतः उनके लिए केवल आहार, ओषधि, शास्त्र और अभय का दान देना चाहिए । तथा आर्यिका, श्रावक ( क्षुल्लक - एलक) और श्राविका ( क्षुल्लिका) वस्त्रधारण भी करते हैं, इसलिए उन्हें वस्त्रदान भी करना चाहिए। यह बात इसी अशोकरोहिणीकथानक में स्पष्ट की गई है
१३. बृहत्कथाकोश / विष्णुकुमार- कथानक / क्र.११ / श्लोक ९ ।
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