________________
द्वितीय प्रकरण यापनीयपक्षधर हेतुओं की हेत्वाभासता
'पद्म' नाम का प्रयोग यापनीयग्रन्थ का असाधारण धर्म नहीं यापनीयपक्ष
पउमचरिउ में राम के लिए पद्म नाम का प्रयोग किया गया है, जो दिगम्बरपरम्परानुसारी नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि ग्रन्थ यापनीयपरम्परा का है। (या.
औ.उ.सा./पृ.१५४-१५५)। दिगम्बरपक्ष
१.रविषेणकृत पद्मपुराण और स्वयंभूकृत पउमचरिउ दोनों में स्त्रीमुक्ति-निषेध आदि यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों का प्रतिपादन है, जो उनके यापनीयग्रन्थ न होने और दिगम्बरग्रन्थ होने का अखण्ड्य प्रमाण है। उनमें राम के लिए पद्म नाम का प्रयोग मिलता है, जिससे सिद्ध है कि पद्म नाम का प्रयोग यापनीयग्रन्थ का असाधारणधर्म नहीं है। अत: वह 'पउमचरिउ' के यापनीयग्रन्थ होने का हेतु नहीं, अपितु हेत्वाभास है।
२. दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में पद्म और राम भिन्न-भिन्न बलदेवों के नाम बतलाये गये हैं। दिगम्बरपरम्परा में इसका उदाहरण तिलोयपण्णत्ती की निम्नलिखित गाथा में दर्शनीय है
विजयाचला सुधम्मो सुप्पह-णामो सुदंसणो णंदी।
तह णंदमित्तरामा पउमो णव होंति बलदेवा॥ ४/५२४॥ श्वेताम्बरपरम्परा में उक्त उदाहरण नीचे दिये श्लोक में मिलता है
अचलो विजयो भद्रः सुप्रभश्च सुदर्शनः।
आनन्दो नन्दनः पद्मो रामः शुक्लो बलास्त्वमी॥ स्वयं श्वेताम्बराचार्य विमलसूरि ने पद्म और राम को एक-दूसरे से भिन्न बतलाया
अयलो विजयो भद्दो सुप्पभ सुदंसणो य नायव्वो। आणंदो नंदणो पउमो नवमो रामो य बलदेवो॥१७
१६. हेमचन्द्रकृत अभिधानचिन्तामणि/ काण्ड ३/ श्लोक ३६२। १७. विमलसूरिकृत पउमचरिय / पर्व ५/गाथा १५४।
Jain Education Intemational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org