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७२२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०२२/प्र०१ __अनुवाद-"अरहन्त, बुद्ध तुम्ही हो। हरि, हर और अज्ञानरूपी तिमिर के शत्रु तुम्हीं हो। तुम सूक्ष्म, निरंजन और परमपद हो। तुम सूर्य, ब्रह्मा, स्वयम्भू और शिव हो।"
आश्चर्य है कि इस पद्य को इन विद्वानों ने परदेवताओं के प्रति समान भक्ति एवं परशासन से मुक्ति का प्रतिपादक कैसे मान लिया! इस पद्य में तो एकमात्र चन्द्रप्रभ जिन को अनेक नामों से सम्बोधित कर उनकी स्तुति की गई है, एक मात्र चन्द्रप्रभ को ही बुद्ध आदि नामों से अभिहित किया गया है। ऐसा कर केवल चन्द्रप्रभ जिन के प्रति अनन्य भक्ति प्रकट की गयी है।
__पउमचरिउ में एक अन्य स्थल पर भगवान् ऋषभनाथ को भी इन्हीं विभिन्न नामों से सम्बोधित कर उनके प्रति अनन्य भक्तिभाव प्रकट किया गया है। इन्द्र अपने लोकपाल आदि देवताओं से कहता है-"जिन के नाम शिव, शंभु, जिनेश्वर, देवदेव, महेश्वर, जिन, जिनेन्द्र, कालंजय, शंकर, स्थाणु , हिरण्यगर्भ, तीर्थंकर---हैं, इन नामों से जो भुवनतल में देवताओं, नागों और मनुष्यों के द्वारा संस्तुत्य हैं, तुम उन परम आदरणीय ऋषभनाथ के चरणयुगल की भक्ति में अपने को डुबा दो।" (५/८७/ ३/१-८)।
ध्यान देने योग्य है कि यहाँ अनेक नामों से केवल ऋषभनाथ को ही संस्तुत्य बतलाया गया है और केवल उन्हीं की भक्ति में डूबने की प्रेरणा दी गई है। इन्द्र यह भी कहता है, "जिनके प्रसाद से यह इन्द्रत्व मिलता है, देवत्व और सिद्धत्व मिलता है, जिन्होंने एक अकेले ज्ञान-समुज्ज्वल चक्र से संसार रूपी घोर शत्रु का हनन कर दिया है, जिन्होंने भवसागर के घोर दुःखों का निवारण किया है, जो भव्य जीवों को खेल-खेल में तार देते हैं, सुमेरुपर्वत के शिखर पर देवेन्द्र जिनका मंगल अभिषेक करते हैं, उनको सदा आदरपूर्वक प्रणाम करना चाहिए, यदि हम संसार और मृत्यु का विनाश करना चाहते हैं।" (५/८७/२/७-१०)।
इस कथन में केवल भगवान् ऋषभनाथ को ही जन्म-मृत्यु का विनाशक बतलाया गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि पउमचरिउ में सर्वत्र जैन तीर्थंकरों को ही गुणपरक निरुक्तियों के आधार पर जैनेतर देवताओं जैसे नाम से सम्बोधित कर उनकी भक्ति आदि करने के लिए कहा गया है और उन्हें ही जन्ममृत्यु का विनाशक बतलाया गया है। जैनेतर देवताओं को तीर्थंकरों के नाम से अभिहित कर उनकी भक्ति आदि करने को नहीं कहा गया, न ही उन्हें जन्म-मरण का नाशक बतलाया गया है। इससे सिद्ध है कि स्वयम्भू कवि परशासन से मुक्ति के समर्थक नहीं हैं।
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