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६७६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०२० / प्र०२
कोप्पल से सम्बद्ध होना यापनीय होने का लक्षण नहीं यापनीयपक्ष
कोप्पल में जटासिंहनन्दी के चरणचिह्न हैं। संभवतः वहाँ उनका समाधिमरण हुआ होगा। कोप्पल यापनीयों का मुख्यपीठ था। अतः जटासिंहनन्दी के यापनीय होने की प्रबल संभावना है। (जै.ध.या.स./पृ.१८९-१९०)। दिगम्बरपक्ष
१. इस हेतु के आधार पर तो उन सब लोगों को यापनीय मानना होगा जिनका मरण कोप्पल में हुआ होगा। किन्तु इसे सिद्ध करनेवाला कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, अतः कोप्पल में समाधिमरण होने के कारण जटसिंहनन्दी यापनीय सिद्ध नहीं होते।
२. वरांगचरित में यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों के प्रतिपादन से सिद्ध है कि जटासिंहनन्दी दिगम्बर थे। इसलिए उन्हें यापनीय सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत यह (कोप्पल में मरण का) हेतु हेत्वाभास है।
, 'यति' शब्द का प्रयोग यापनीय होने का लक्षण नहीं यापनीयपक्ष
"यापनीयपरम्परा में मुनि के लिए यति का प्रयोग अधिक प्रचलित रहा है। यापनीय आचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन को यतिग्रामाग्रणी कहा गया है। हम देखते हैं कि जटासिंहनन्दी के इस वरांगचरित में भी मुनि के लिए यति शब्द का प्रयोग बहुतायत से हुआ है। ग्रन्थकार की यह प्रवृत्ति उसके यापनीय होने का संकेत करती है।" (जै.ध.या.स./ पृ.१९०) दिगम्बरपक्ष
दिगम्बराचार्य यतिवृषभ के नाम में भी 'यति' शब्द का प्रयोग है। न्यायदीपिका के कर्ता दिगम्बराचार्य अभिनवधर्मभूषणयति के साथ भी 'यति' शब्द जुड़ा हुआ है। दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द ने भी मुनि के लिए 'यति' शब्द व्यवहृत किया है। जैसे
मोत्तूण णिच्छयटुं ववहारेण विदुसा पवटुंति। परमट्ठमस्सिदाण दु जदीण कम्मक्खओ विहिओ॥ १५६॥ स.सा.।
तथा
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