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अ०२० / प्र०२
वराङ्गचरित / ६७५ दिगम्बरपक्ष
१. पुन्नाटसंघ का विकास यापनीयसम्प्रदाय के पुन्नागवृक्षमूलगण से हुआ था, यह कथन किसी प्रमाण के आधार पर नहीं, अपितु कल्पना के आधार पर किया गया है। इतिहास में ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है, जिससे यह सिद्ध हो कि पुन्नाटसंघ का उद्भव यापनीय-पुन्नागवृक्षमूलगण से हुआ था। वस्तुतः 'पुन्नाट' कर्नाटक का प्राचीन नाम था। इसी के आधार पर पुन्नाट के दिगम्बर जैन मुनियों का संघ 'पुन्नाटसंघ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ था। इसका विस्तार से विवेचन प्रस्तुत ग्रन्थ के 'हरिवंशपुराण' नामक अध्याय (प्रकरण २/शीर्षक १) में द्रष्टव्य है।
२. वरांगचरित में उपलब्ध यापनीयमत-विपरीत सिद्धान्तों से सिद्ध है कि वह दिगम्बरग्रन्थ है। इससे इस बात में कोई सन्देह नहीं रहता कि उसके कर्ता जटासिंहनन्दी दिगम्बर थे।
३. हरिवंशपुराण में भी यापनीयमतविरोधी सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। अतः उसके कर्ता जिनसेन भी दिगम्बर थे, इसलिए उनके द्वारा सादर उल्लिखित किये जाने से (उक्त ग्रन्थलेखक के तर्क के अनुसार) जटासिंहनन्दी दिगम्बर ही सिद्ध होते हैं।
इस प्रकार पुन्नाटसंघ का विकास यापनीय पुन्नागवृक्षमूलगण से हुआ था तथा हरिवंशपुराणकार यापनीय थे, ये दोनों हेतु मिथ्या हैं। अतः वरांगचरित यापनीय ग्रन्थ सिद्ध नहीं होता। .
___ काणूरगण दिगम्बरसम्प्रदाय का ही गण था यापनीयपक्ष
कन्नड़ कवि जन्न ने जटासिंहनन्दी को काणूगण का बताया है। यह यापनीयपरम्परा का गण था। अतः जटासिंहनन्दी यापनीय थे। (जै.ध.या.स./पृ.१८८)। दिगम्बरपक्ष
यापनीयसंघ का इतिहास नामक अध्याय (७) के तृतीय प्रकरण में सप्रमाण सिद्ध किया जा चुका है कि काणूगण या क्राणूगण दिगम्बर मूलसंघ का ही गण था। यापनीयसंघ में कण्डूगण था। 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ के लेखक ने भ्रम से काणूगण और कण्डूगण को एक मान लिया है। अतः उपर्युक्त हेतु असत्य
है।
७. देखिये, एकविंश अध्याय-'हरिवंशपुराण'/ प्रथम प्रकरण।
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