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७१० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०२१/प्र०२ है। हरिवंशपुराण में उनके नामों का उल्लेख श्वेताम्बरसाहित्य के अनुसार न होकर दिगम्बरपरम्परा के तत्त्वार्थराजवार्तिक, धवलाटीका आदि के अनुसार हुआ है। इससे सिद्ध है कि हरिवंशपुराण दिगम्बरपरम्परा का ही ग्रन्थ है। अतः हरिवंशपुराण के कर्ता को यापनीय सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया गया यह हेतु भी असत्य है।
यापनीयपक्ष
हरिवंशपुराण के ६०वें सर्ग में कृष्ण की आठों पटरानियों-सहित अनेक स्त्रियों के दीक्षित होने का उल्लेख है, जो उसके यापनीय-ग्रन्थ होने की संभावना को पुष्ट करता है। (जै.ध.या.स./पृ. १७६)। दिगम्बरपक्ष
दिगम्बरसम्प्रदाय में भगवान् ऋषभदेव के समय से ही स्त्रियों के आर्यिकादीक्षा ग्रहण करने की परम्परा चली आ रही है। उनके समवसरण में तीन लाख पचास हजार आर्यिकाएँ थीं। शेष २३ तीर्थंकरों के समवसरणों में भी हजारों-लाखों आर्यिकाएँ थीं। (ह.पु./६०/४३२-४४०)। आचार्य कुन्दकुन्द ने आर्यिकाओं के एकवस्त्रात्मक लिंग का वर्णन किया है। अतः हरिवंशपुराण में कृष्ण की पटरानियों के दीक्षित होने का उल्लेख उसके दिगम्बरग्रन्थ होने की ही पुष्टि करता है। तथा आठों पटरानियों (महादेवीभिरिष्टाभिरष्टभिः/हरि.पु./४४/५०) में से किसी की भी स्त्रीपर्याय से मुक्ति नहीं बतलायी गयी। उनके बारे में भविष्यवाणी की गई हैं कि वे इस जन्म में दीक्षा लेकर तप करेंगी, अगले भव में देव होंगी, तत्पश्चात् मनुष्यभव में पुरुष होकर मोक्ष प्राप्त करेंगी। उदाहरणार्थ, हरिवंशपुराण के निम्नलिखित श्लोकों में कृष्ण की तीसरी पटरानी जाम्बवती के बारे में भगवान् नेमिनाथ कहते हैं कि "तुम इस जन्म में तपस्विनी होकर तप करोगी। पश्चात् स्वर्ग में उत्तम देव होकर वहाँ से च्युत हो राजपुत्र होगी। तदनन्तर तप के द्वारा तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा"
नगरे जाम्बवाभिख्ये जाम्बवस्य खगेशिनः। जाम्बवत्यां प्रियायां त्वं जाता जाम्बवती सुता॥ ६०/५३॥ तपस्तपस्विनी कृत्वा भूत्वा कल्पामरोत्तमः।
च्युत्वा नृपात्मजो भूत्वा तपसा सिद्धिमेष्यति॥ ६०/५४॥ हरिवंशपुराण में यह स्त्रीपर्याय से मुक्ति के निषेध का वर्णन ग्रन्थ को यापनीयमत के प्रतिपक्षी दिगम्बरसम्प्रदाय से सम्बद्ध सिद्ध करता है। इस प्रकार कृष्ण की आठों पटरानियों और अन्य स्त्रियों की दीक्षा का वर्णन केवल दिगम्बरपरम्परा के अनुकूल है, यापनीयपरम्परा के सर्वथा विरुद्ध है। अतः यहाँ प्रयुक्त किया गया हेतु भी असत्य है।
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