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६९४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०२१ / प्र०१ - ३. यापनीयमान्य श्वेताम्बर-'ज्ञातृधर्मकथाङ्ग' में तीर्थंकर प्रकृतिबन्धक भावनाएँ बीस बतलायी गई हैं। इसके विपरीत हरिवंशपुराण में सोलह भावनाएँ ही वर्णित हैं।१२
४. हरिवंशपुराण में अहिंसादि महाव्रतों की पाँच-पाँच भावनाएँ दिगम्बरमान्य तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार वर्णित हैं, श्वेताम्बरमान्य तत्त्वार्थसूत्र में तो भावनाओं का उल्लेख ही नहीं है। तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में है, किन्तु हरिवंशपुराण में, उनका भी अनुसरण नहीं किया गया है। उदाहरणार्थ, दिगम्बरमान्य तत्त्वार्थसूत्र में अहिंसामहाव्रत की पाँच भावनाओं के अन्तर्गत मनोगुप्ति के साथ वचनगुप्ति का भी उल्लेख है,१३ जबकि श्वेताम्बरीय तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में वचनगुप्ति के स्थान में एषणासमिति का कथन है।१४ हरिवंशपुराण में दिगम्बरमान्य तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार वचनगुप्ति का ही वर्णन है।५ यह भी यापनीयमत के विरुद्ध है।
५. श्वेताम्बर-आगमों के अनुसार तीर्थंकर की माता तीर्थंकर के गर्भ में आने पर चौदह स्वप्न देखती हैं,१६ जब कि दिगम्बरपुराणों में सोलह स्वप्नों का वर्णन है। हरिवंशपुराण में भी मरुदेवी को सोलह स्वप्न देखते हुए वर्णित किया गया है। हरिवंशपुराण की यह मान्यता भी श्वेताम्बर-आगमों को प्रमाण माननेवाले यापनीयों के मत के विरुद्ध है।
६. यापनीयमान्य श्वेताम्बर-आगमों में काल को स्वतंत्र द्रव्य नहीं माना गया है। स्वतंत्र द्रव्य की मान्यता को श्वेताम्बराचार्यों ने अन्य (दिगम्बर) आचार्यों का मत कहा है।८ किन्तु हरिवंशपुराण में न केवल स्वतंत्र कालद्रव्य का अस्तित्व स्वीकार किया गया है, बल्कि उसके स्वतंत्र द्रव्यत्व को युक्तियों के द्वारा सिद्ध भी किया गया है। (७/१-३१)। यह भी हरिवंशपुराण में यापनीयमतविरोधी सिद्धान्तों के प्रतिपादन का एक उदाहरण है।
१२. केचित् पूर्वभवाभ्यस्तशुभषोडशकारणाः॥३/१७४,५८/११२, ३४/१३२-१४९॥हरिवंशपुराण। १३. "वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च" ७/४/ तत्त्वार्थसूत्र (दि.)। १४. "अहिंसायास्तावदीर्यासमितिर्मनोगुप्तिरेषणासमितिरादाननिक्षेपणसमितिरालोकितपानभोजनमिति।"
७/३/ तत्त्वार्थाधिगमभाष्य। १५. सुवाग्गुप्तिमनोगुप्ती स्वकाले वीक्ष्य भोजनम्।।
द्वे चेर्यादाननिक्षेपसमिती प्राग्व्रतस्य ताः॥ ५८/११८॥ हरिवंशपुराण। १६. १. गज, २. वृषभ, ३. सिंह, ४. अभिषेक, ५. पुष्पमाला, ६. चन्द्रमा, ७. सूर्य, ८. ध्वजा,
९. कुम्भ, १०. पद्मयुक्त सरोवर, ११. सागर, १२. विमान, १३. रत्नराशि और १४. निर्धूम
अग्नि। (ज्ञातृधर्मकथांग / अध्ययन ८ मल्ली / पृष्ठ २२२)। १७. निधीनिव निशाशेषे ददर्श शुभसूचकान्।
क्रमेण षोडशस्वप्नानिमान् दुर्लभदर्शनान्॥ ८/५८॥ हरिवंशपुराण। १८. 'कालश्चेत्येके।' ५/३८ / तत्त्वार्थसूत्र (श्वे.)।
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