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द्वितीय प्रकरण यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता
प्रथम प्रकरण में प्रस्तुत प्रमाणों से हरिवंशपुराण के दिगम्बरग्रन्थ सिद्ध हो जाने पर यह भी निश्चित हो जाता है कि पूर्वोक्त यापनीयपक्षधर विदुषी एवं विद्वान् ने उसे यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिए जो हेतु सामने रखे हैं, वे या तो असत्य हैं या हेत्वाभास हैं, क्योंकि उनके रहते हुए भी हरिवंशपुराण दिगम्बरग्रन्थ सिद्ध होता है, यापनीयग्रन्थ नहीं। प्रस्तुत प्रकरण में यह स्पष्ट किया जा रहा है कि उनमें से कौन - सा हेतु असत्य है और कौन - सा हेत्वाभास । स्पष्टीकरण के लिए यापनीयपक्षपोषक हेतु का प्रदर्शन यापनीयपक्ष शीर्षक के नीचे तथा उसकी असत्यता या हेत्वाभासता का प्ररूपण दिगम्बरपक्ष शीर्षक के नीचे किया जा रहा है। ।
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यापनीयपक्ष
बृहत्कथाकोशकार हरिषेण पुन्नाटसंघी थे। उन्होंने कथाकोश में स्त्रीमुक्ति और गृहस्थमुक्ति का स्पष्ट उल्लेख किया है, अतः वे यापनीय थे । हरिवंशपुराण के कर्त्ता जिनसेन भी पुन्नाटसंघी थे, अतः इन्हें भी यापनीय ही होना चाहिए। (या. औ.उ.सा./ पृ.१४९)।
दिगम्बरपक्ष
जिनसेन और हरिषेण दोनों ने क्रमशः अपने हरिवंशपुराण एवं बृहत्कथाकोष में स्त्रीमुक्ति, सवस्त्रमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, अन्यलिंगिमुक्ति, केवलिभुक्ति आदि यापनीयसिद्धान्तों का निषेध किया है, अतः दोनों यापनीय नहीं थे, अपितु दिगम्बर थे । इसलिए उनका पुन्नाटसंघ भी दिगम्बरों का ही संघ था, यापनीयों का नहीं । यापनीयपक्षधर विद्वान् और विदुषी ने जहाँ स्त्रीमुक्ति आदि का निषेध है, वहाँ स्त्रीमुक्ति आदि का प्रतिपादन मानकर इस असत् हेतु के द्वारा ग्रन्थ और ग्रन्थकर्त्ता को यापनीय सिद्ध करने का दूषित प्रयास किया है।
पुन्नाटसंघ को यापनीयसंघ सिद्ध करने के लिए डॉ० सागरमल जी ने यह भी स्वबुद्धि से कल्पित कर लिया है कि इसकी उत्पत्ति यापनीयों के पुन्नागवृक्षमूलगण हुई थी। (जै. ध. या.स./ पृ. ६३ ) । किन्तु इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है । डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर ने इससे उलटी अटकल लगाई है। उनका कहना है कि " संभवत: पुन्नागवृक्षमूलगण पुन्नाटसंघ का ही रूपान्तर है।" ( भट्टा. सम्प्र. / पृ. २५७ ) । इसके पक्ष में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है । यह उनके मन की अटकल है, जो वाक्य में प्रयुक्त सम्भवतः शब्द से सूचित होती है।
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