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अ० २० / प्र० २
वराङ्गचरित / ६८३
उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि यापनीयपक्षधर ग्रन्थलेखक ने दिगम्बरग्रन्थ वरांगचरित को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने के लिये जो हेतु प्रस्तुत किये हैं, उनमें कौन असत्य है और कौन हेत्वाभास । शीर्षक क्रमांक १, २, ३, ६, ७, ८, ९ में वर्णित हेतु असत्य हैं और ४, ५ में वर्णित हेतु हेत्वाभास हैं । उन की असत्यता और हेत्वाभासता दृष्टिगोचर हो जाने से यह सिद्ध हो जाता है कि वरांगचरित यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ नहीं है, प्रत्युत दिगम्बरीय सिद्धान्तों का प्रतिपादक होने से दिगम्बरमत का ग्रन्थ है ।
उपसंहार
वरांगचरित के दिगम्बरकृति होने के प्रमाण सूत्ररूप में
अब यहाँ उन समस्त प्रमाणों पर एक साथ दृष्टि डाल ली जाय, जिनसे सिद्ध होता है कि वरांगचरित यापनीयग्रन्थ नहीं, अपितु दिगम्बरग्रन्थ है । वे इस प्रकार हैं
१. वरांगचरित में केवलिभुक्ति, वैकल्पिक सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति एवं अन्यलिंगिमुक्ति का निषेध किया गया है, जो यापनीयमत के आधारभूत सिद्धान्त हैं ।
२. वरांगचरित में महावीर के विवाह की मान्यता भी अस्वीकार की गई है, जब कि यापनीयमान्य श्वेताम्बर - आगमों में महावीर के विवाह होने की बात कही गई है।
३. वरांगचरित में जो पाँच महाव्रतों की भावनाएँ वर्णित हैं, वे दिगम्बर - आगमों का अनुसरण करती हैं और यापनीयमान्य श्वेताम्बर - तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में वर्णित भावनाओं से भिन्न हैं ।
४. वरांगचरित में मुनि के लिए बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रह का त्याग आवश्यक बतलाया गया है। यह सिद्धान्त यापनीयों द्वारा मान्य वैकल्पिक सवस्त्रमुक्ति के विरुद्ध है ।
५. वरांगचरित में स्वतंत्र काल द्रव्य की सत्ता स्वीकार की गई है, जबकि यापनीय-मान्य श्वेताम्बर - आगम उसे अमान्य करते हैं।
६. वरांगचरित में चौदह गुणस्थानों का कथन है । यह सिद्धान्त यापनीयों की गृहस्थमुक्ति एवं अन्यलिंगिमुक्ति की मान्यताओं के विरुद्ध है।
७. वरांगचरित में दिगम्बरमत के अनुरूप 'प्रथमानुयोग' शब्द का प्रयोग किया गया है। यापनीयमान्य श्वेताम्बरसाहित्य में उसके स्थान पर 'धर्मकथानुयोग' शब्द प्रयुक्त हुआ है।
८. वरांगचरित में वेदत्रय की स्वीकृति है, जब कि यापनीयमत केवल एक ही वेदसामान्य मानता है ।
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