________________
अ० २१ / प्र० १
हरिवंशपुराण / ६८९
वहाँ से च्युत होकर निर्ग्रन्थ तप करके निश्चित ही मोक्ष प्राप्त करोगी।" देखिए हरिवंशपुराण के निम्नलिखित पद्य
ततोऽवतीर्य
भीष्मस्य श्रीमत्यां त्वं सुताभवः ।
नगरे कुण्डिनाभिख्ये रुक्मिणी रुक्मिणः स्वसा ॥ ६०/३९॥
कृत्वा चात्र भवे भव्ये प्रव्रज्यां विबुधोत्तमः । च्युत्वा तपश्च कृत्वात्र नैर्ग्रन्थ्यं मोक्ष्यसे ध्रुवम् ॥ ६० / ४० ॥
कृष्ण की पहली पट्टरानी सत्यभामा, तीसरी पट्टरानी जाम्बवती, चौथी पट्टरानी सुसीमा, पाँचवी, पट्टरानी लक्ष्मणा, छठी पट्टरानी गान्धारी, सातवीं पट्टरानी गौरी और आठवीं पट्टरानी पद्मावती के विषय में भी भगवान् ने तीसरे भव में पुरुषपर्याय से मुक्त होने की भविष्यवाणी की है।
हरिवंशपुराणकार ने 'मल्लि' शब्द के साथ पुंल्लिंग का प्रयोग किया है, जिससे संकेतित होता है कि वे उन्हें स्त्री नहीं मानते। इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर - आगम ज्ञातृधर्मकथा में उन्हें जयन्त नामक स्वर्ग से अवतरित माना गया है, जबकि हरिवंशपुराण के अनुसार वे अपराजित स्वर्ग से अवतरित हुए थे। इस प्रकार हरिवंशपुराण में स्त्रीमुक्तिनिषेध के अनेक प्रमाण उपलब्ध होते हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि वह दिगम्बरग्रन्थ है, यापनीयग्रन्थ नहीं ।
२
सवस्त्रमुक्ति एवं गृहस्थमुक्ति का निषेध
हरिवंशपुराण में मुनि के लिए उन्हीं २८ मूलगुणों का विधान किया गया है, जिनका उल्लेख आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रवचनसार (३/८-९) में किया है। देखिए -
Jain Education International
विरतिर्यतः ।
महाव्रतम् ॥ २ / १२१ ॥
बाह्याभ्यन्तरवर्तिभ्यः सर्वेभ्यो स्वपरिग्रहदोषेभ्यः पञ्चमं तु एवं समितयः पञ्च गोप्यास्तिस्रस्तु गुप्तयः । वाङ्मनःकाययोगानां शुद्धरूपाः प्रवृत्तयः ॥ २ / १२७ ॥
चित्तेन्द्रियनिरोधश्च लोचास्नानैक-भक्तं च
षडावश्यक-सत्क्रियाः ।
स्थिति - भुक्तिरचेलता ॥ २/१२८॥
१. हरिवंशपुराण ६० / २२-२३, ५३-५४, ७२, ८५, ९३-९४, १०४, १२१ - १२२ । २. क — 'नमो मोहमहामल्लमाथिमल्लाय मल्लये ॥ १/ २१ ॥ हरिवंशपुराण । ख—'मल्लिः पञ्चशतैः सिद्धः शान्तिर्नवशतैः ३. ‘नमिमल्लीशावपराजिततश्च्युतौ ॥' ६० / १६५ ॥ हरिवंशपुराण ।
सह ॥' ६० / २८३ ॥ हरिवंशपुराण ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org