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६६० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०२० / प्र०१ पल्यः का अर्थ है राजा वरांग की सुन्दर अंगोंवाली पत्नियाँ। 'क्षितीन्द्रपल्यः कमलायताक्ष्यो' इत्यादि तीन पद्यों (२९/९२-९४) में वर्णित कमलायताक्ष्यो, विचित्ररत्नप्रविभूषिताङ्ग्यः भक्त्यार्पितचेतसः, प्रहृष्टाः, विगतानुरागाः, प्रबुद्धतत्त्वाः, एवं सितशुभ्रवस्त्राः पद भी राजा वरांग की रानियों के विशेषण हैं। इस प्रकार तीनों पद्यों में राजा वरांग की रानियों की आर्यिकादीक्षा का वर्णन है। अतः श्वेतवस्त्र धारण करने का वर्णन उन्हीं के विषय में है, राजा वरांग के विषय में नहीं, यह क्षितीन्द्रपत्न्यः पद के प्रयोग से स्पष्ट है। राजा वरांग की मुनिदीक्षा का वर्णन तो 'विशालबुद्धिः श्रुतधर्मतत्त्वः' इत्यादि पूर्वोद्धृत पद्यों (२९/८५-८७) में किया जा चुका है, जिनमें कहा गया है कि राजा वरांग ने राज्य, वाहन आभूषण, आच्छादन (वस्त्र) आदि का निर्माल्य के समान परित्याग कर जातरूप (नग्नरूप) धारण कर लिया। इस प्रकार 'वरांगचरित' में राजा वरांग की दैगम्बरीदीक्षा का वर्णन है, सवस्त्रदीक्षा का नहीं। ___इसलिए यद्यपि संस्कृतभाषा के ज्ञान के अभाव में यह माना जा सकता है कि उक्त ग्रन्थलेखक ने वराङ्गियों (रानियों) के विषय में किये गये कथन को वरांग के विषय में किया गया मान लिया है, तथापि यह नहीं माना जा सकता कि संस्कृत का ज्ञान न होते हुए भी उन्होंने हिन्दी अनुवाद नहीं पढ़ा होगा। यदि न पढ़ा होता, तो उक्त पद्यों का जितना थोड़ा बहुत सही अर्थ उन्होंने लिखा है, उतना भी नहीं लिख सकते थे। इसलिए यह निश्चित है कि उन्होंने उक्त संस्कृत पद्यों का हिन्दी अनुवाद अवश्य पढ़ा है और हिन्दी अनुवाद में तो 'वराङ्गयो' शब्द का 'वरांगकुमार' अर्थ किसी भी संस्कृतज्ञ के द्वारा नहीं किया जा सकता, न किया गया है। तब उन्होंने हिन्दी अर्थ का अनुसरण न कर अपने मन से 'वरांगकुमार' अर्थ क्यों ग्रहण किया? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। साथ ही यह प्रश्न भी उठना स्वाभाविक है कि जब पूर्व पद्यों में राजा वरांग के दिगम्बररूप में दीक्षित होने का कथन किया जा चुका है, तब उन्होंने यहाँ उन्हें सवस्त्ररूप में दीक्षित क्यों बतलाया? विचार करने पर स्पष्ट होता है कि यह उनके द्वारा जगह-जगह अपनाये गये छलवाद का बृहत्तम उदाहरण है, जिसके सहारे उन्होंने अनेक दिगम्बरग्रन्थों को यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। २.३. वरांग की सवस्त्रदीक्षा की संभावना के लिए स्थान नहीं
यापनीयपक्षी ग्रन्थलेखक का पूर्वोद्धृत यह कथन भी अत्यन्त आश्चर्यजनक है कि "यापनीयों में अपवादमार्ग में दीक्षित होते समय राजा आदि का नग्न होना आवश्यक नहीं माना गया था। चूँकि वरांगकुमार राजा थे, अतः सम्भव है कि उन्हें सवस्त्र ही दीक्षित होते दिखाया गया हो।" यह कथन सूचित करता है कि उन्होंने वरांगचरित
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