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४२६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१६/प्र०७ के प्रारंभ में हुआ था। काल की यह पूर्वापरता दर्शाती है कि तत्त्वार्थसूत्रकार यापनीय हो ही नहीं सकते।
इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता गृध्रपिच्छाचार्य दिगम्बरपरम्परा के ही आचार्य हैं, वे न तो श्वेताम्बर हैं, न यापनीय। तत्त्वार्थाधिगमभाष्य के कर्ता उमास्वाति श्वेताम्बर हैं। वे यापनीय भी हो सकते हैं।
उपसंहार तत्त्वार्थसूत्र दिगम्बरग्रन्थ : प्रमाण सूत्ररूप में १. तत्त्वार्थ के सूत्र सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, अन्यलिंगिमुक्ति और केवलिभुक्ति के विरोधी हैं, जब कि भाष्य इनका प्रतिपादक है। अतः सूत्रकार और भाष्यकार परस्पर भिन्न सम्प्रदायों के हैं। सूत्रकार दिगम्बर हैं, भाष्यकार श्वेताम्बर, इसलिए भाष्यकार के श्वेताम्बर होने से सूत्रकार श्वेताम्बर सिद्ध नहीं होते।
२. सूत्र और भाष्य में परस्पर विसंगतियाँ हैं, इससे भी सिद्ध होता है कि सूत्रकार और भाष्यकार भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं।
३. तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में न तो भाष्यसम्मत तत्त्वनिरूपण मिलता है, न भाष्यगत दिगम्बरमत-विरोधी सिद्धान्तों का निरसन है, न भाष्य के अंत में निबद्ध बत्तीस श्लोक ग्रहण किये गये हैं। इसके विपरीत भाष्य में सर्वार्थसिद्धिसम्मत तत्त्वनिरूपण है तथा सर्वार्थसिद्धिमान्य सूत्र उद्धृत किया गया है। इसके अतिरिक्त तत्त्वार्थाधिगमभाष्य की शैली सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा अर्वाचीन है तथा अर्थविस्तार भी सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा अधिक है। इन तथ्यों से सिद्ध होता है कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना पहले हुई थी और भाष्य की उसके बाद। इस प्रकार सूत्रकार और भाष्यकार में कालभेद होने से वे भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। अतः भाष्यकार के श्वेताम्बर होने से सूत्रकार श्वेताम्बर सिद्ध नहीं होते।
__४. श्वेताम्बराचार्य रत्नसिंह सूरि ने तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पर टिप्पण लिखे हैं। उनमें भाष्यमान्य सूत्रपाठ की अपेक्षा कुछ अधिक सूत्रों का उल्लेख है, जो दिगम्बरमान्य सूत्रपाठ से मिलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि तत्त्वार्थभाष्य लिखे जाने से पूर्व तत्त्वार्थसूत्र का एक ऐसा पाठ उपस्थित था, जिसकी दिगम्बरमान्य सूत्रपाठ से संगति थी। इससे भी सूत्रकार और भाष्यकार में कालभेद और उससे उनका भिन्न-भिन्न व्यक्ति होना सिद्ध होता है।
५. भाष्य के पूर्व भी श्वेताम्बराचार्यों द्वारा तत्त्वार्थसूत्र पर टीकाएँ लिखी गई थीं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि से पहले भी दिगम्बराचार्यों द्वारा तत्त्वार्थसूत्र पर टीका
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