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अ०१८ / प्र०२
सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन : दिगम्बराचार्य / ५३७ ___ यहाँ एक बात उल्लेखनीय है कि द्वात्रिंशिकाकार सिद्धसेन के लिए द्वेष्यश्वेतपट विशेषण का प्रयोग किसी श्वेताम्बर विद्वान् ने ही किया है, क्योंकि वह निश्चयद्वात्रिंशिका के अन्त में पुष्पिकावाक्य में प्रयुक्त है, तथापि माननीय डॉ० सागरमल जी ने लिखा है कि उक्त विशेषण का प्रयोग किसी दिगम्बराचार्य ने किया है। (जै. ध.या.स./ पृ.२२८)। विचारणीय है कि कोई दिगम्बराचार्य केवल निश्चयद्वात्रिंशिकाकार के लिए ही 'द्वेष्यश्वेतपट' क्यों कहेगा? अगर साम्प्रदायिक द्वेषवश ऐसा कहना होता, तो दिगम्बराचार्य हर श्वेताम्बरग्रन्थ के अन्त में उसके कर्ता के लिए 'द्वेष्यश्वेतपट' विशेषण अंकित कर देते। किन्तु ऐसा अपने ग्रन्थों में तो सम्भव है, किन्तु दूसरे सम्प्रदाय के ग्रन्थों में ऐसा करना न तो दिगम्बरों के लिए संभव है, न श्वेताम्बरों के लिए। फिर भी डॉक्टर सा० ने ऐसा मान लिया है। डॉक्टर सा० श्वेताम्बरों का दोष भी दिगम्बरों के सिर मढ़ना चाहते हैं। उनकी मनःस्थिति दिगम्बरों के प्रति बड़ी आक्रोशमय प्रतीत होती है। श्वेताम्बरपक्ष
मुख्तार जी के आलोचक उक्त विद्वान् ने उन पर आरोप लगाया है कि उन्होंने सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन को दिगम्बरपरम्परा का आचार्य सिद्ध करने के लिए कोई भी आधारभूत प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है। (जै.ध. या.स./पृ.२२६)। दिगम्बरपक्ष
मुख्तार जी ने इसके लिए निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये हैं
१. सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन ने श्वेताम्बर-आगमों की उपयोगद्वयविषयक-क्रमवाद की मान्यता का सन्मतिसूत्र में जोरदार खण्डन किया है और अभेदवाद की सिद्धि की है, जो दिगम्बरमान्य यौगपद्यवाद के निकट है। (पु.जै.वा.सू./प्रस्ता./पृ. १३४-१३५)।
२. श्वेताम्बराचार्यों ने सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन की अभेदवादी मान्यता की कटु आलोचना की है और उनके प्रति अनादरभाव प्रकट किया है, जब कि दिगम्बरसाहित्य में सर्वत्र उनका सम्मानपूर्वक स्मरण किया गया है। (वही/ पृ. १६६)।
३. दिगम्बरसम्प्रदाय में सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन को सेनगण (संघ) का आचार्य माना गया है और सेनगण की पट्टावली में उनका उल्लेख है। (वही/ पृ. १५७)।
४. हरिवंशपुराणकार दिगम्बराचार्य जिनसेन ने पुराण के अन्त में अपनी गुर्वावली में सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन के नाम का उल्लेख किया है और आरंभ में उनकी सूक्तियों को भगवान् वृषभदेव की सूक्तियों के तुल्य बतलाया है। (वही/पृ. १५८)।
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