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अ०१८ / प्र०४
सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन : दिगम्बराचार्य / ५९१ ऋषिर्यतिर्मुनिर्भिक्षुस्तापसः संयतो व्रती।
तपस्वी संयमी योगी वर्णी साधुश्च पातु वः॥ ३॥ "जैनसाहित्य में योगी की अपेक्षा यति, मुनि, तपस्वी जैसे शब्दों का प्रयोग अधिक पाया जाता है, जो उसके पर्याय नाम हैं। रत्नकरण्ड में भी यति, मुनि और तपस्वी शब्द योगी के लिये व्यवहत हुए हैं। तपस्वी को आप्त तथा आगम की तरह सम्यग्दर्शन का विषयभूत पदार्थ बतलाते हुए उसका जो स्वरूप एक पद्य'२६ में दिया है, वह खासतौर से ध्यान देने योग्य है। उसमें लिखा है कि-"जो इन्द्रियविषयों तथा इच्छाओं के वशीभूत नहीं है, आरम्भों तथा परिग्रहों से रहित है और ज्ञान, ध्यान एवं तपश्चरणों में लीन रहता है, वह तपस्वी प्रशंसनीय है।" इस लक्षण से भिन्न योगी के और कोई सींग नहीं होते। एक स्थान पर सामायिक में स्थित गृहस्थ को चेलोपसृष्टमुनि की तरह यतिभाव को प्राप्त हुआ लिखा है।१२७ चेलोपसृष्टमुनि का अभिप्राय उस नग्न दिगम्बर जैन योगी से है, जो मौन-पूर्वक योग-साधना करता हुआ ध्यानमग्न हो और उस समय किसी ने उसको वस्त्र ओढ़ा दिया हो, जिसे वह अपने लिये उपसर्ग समझता है। सामायिक में स्थित वस्त्रसहित गृहस्थ को उस मुनि की उपमा देते हुए उसे जो यतिभाव (योगी के भाव) को प्राप्त हुआ लिखा है और अगले पद्य में उसे अचलयोग भी बतलाया है, उससे स्पष्ट जाना जाता है कि रत्नकरण्ड में भी योगी के लिये यति शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके सिवाय, अकलंकदेव ने अष्टशती (देवागम-भाष्य) के मंगल-पद्य में आप्तमीमांसाकार स्वामी समन्तभद्र को 'यति' लिखा है,१२८ जो सन्मार्ग में यत्नशील अथवा मन-वचन-काय के नियन्त्रणरूप योग की साधना में तत्पर योगी का वाचक है, और श्रीविद्यानन्दाचार्य ने अपनी अष्टसहस्री में उन्हें यतिभृत् और यतीश तक लिखा है,१२९ जो दोनों ही योगिराज अथवा योगीन्द्र अर्थ के द्योतक हैं, और यतीश के साथ प्रथिततर विशेषण लगाकर तो यह भी सूचित किया गया है कि वे एक बहुत बड़े प्रसिद्ध योगिराज थे। ऐसे ही उल्लेखों को दृष्टि में रखकर वादिराज ने उक्त पद्य में समन्तभद्र के लिये योगीन्द्र विशेषण का प्रयोग किया जान पड़ता है। और इसलिये यह कहना कि 'समन्तभद्र योगी नहीं थे अथवा
१२६. विषयाऽऽशावशाऽतीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः।
ज्ञान-ध्यान-तपोरक्तस्तपस्वीस प्रशस्यते॥ १०॥ १२७. सामयिके सारम्भाः परिग्रहा नैव सन्ति सर्वेऽपि।
__ चेलोपसृष्टमुनिरिव गृही तदा याति यतिभावम्॥ १०२ ॥ १२८. "येनाचार्य-समन्तभद्र-यतिना तस्मै नमः संततम्।" १२९. "स श्रीस्वामिसमन्तभद्र-यतिभृद्-भूयाद्विभुर्भानुमान्।" ___ "स्वामी जीयात्स शवश्त्प्रथिततरयतीशोऽकलङ्कोरुकीर्तिः।"
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